पहलगाम हमले के बाद भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया और पाकिस्तान को घुटनों के बल टेकने पर मजबूर कर दिया। अफ़वाहें कुछ भी कह रही हों लेकिन दुनिया की कोई भी जिम्मेदार ताक़त बता सकती है कि 75 सालों में भारत में सिर्फ़ लोकतंत्र ही मज़बूत नहीं हुआ है बल्कि यहाँ की रणनीतिक क्षमता का विकास भी उसी अनुपात में हुआ है।

लेकिन यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर से जो कुछ भी हासिल हुआ वह सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय सेना का शौर्य और पराक्रम था, भारतीय जनता पार्टी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नहीं। यह ज़रूर कहा जा सकता है कि राजनैतिक नेतृत्व ने एक फ़ैसला किया जिसे सेना ने ज़मीन में उतार दिया। लेकिन यह बात पीएम मोदी नहीं समझ पा रहे हैं। रेलवे टिकट और बड़े-बड़े बिलबोर्ड्स में ऑपरेशन सिंदूर के साथ नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगा दी गई है। भारत के इतिहास में मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो सेना के शौर्य के माध्यम से ख़ुद की ख्याति चाहते हैं। पता नहीं, यह किसका काम है लेकिन मोदी ज़रूर इस बात को जानते होंगे और फिर भी वो इसका विरोध नहीं कर रहे हैं, इसका यही मतलब है कि वो इस सोच में शामिल हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के बहाने देश की जनता को यह बताया जाए कि यह सब ‘मेरी वजह’ से हुआ है। सेना ने सीना दिखाकर पाकिस्तान का सामना किया, पाँच भारतीय जवान शहीद हो गए और तमाम नागरिकों को भी अपनी जान गँवानी पड़ी। लेकिन जब श्रेय की बात आई तो पीएम मोदी सामने आकर खड़े हो गए। सैनिकों की शहादत हुई है, श्रेय सैनिकों को जाना चाहिए। कोई नहीं कहता कि रेलवे टिकट पर सेना का शौर्य न छपे। मैं तो कहता हूँ कि देश के हर कोने में ऑपरेशन सिंदूर की बात हो, इसकी धमक जाये, देश के लोगों को पता चले कि उनकी सुरक्षा किसके हाथ में है! टिकट हों या बिलबोर्ड्स अगर तस्वीर छपनी चाहिए तो सेना की सिंबॉलिक तस्वीर छपनी चाहिए थी, पीएम मोदी की नहीं।