लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सत्ता व विपक्षी दलों के नेताओं ने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप शुरू कर दिये हैं। राजनीति के स्वयंभू 'चाणक्यों' द्वारा बड़ी ही चतुराई से मतदाताओं का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटका कर ग़ैर ज़रूरी मुद्दों की तरफ़ खींचा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि इस बार होने जा रहे 18वीं लोकसभा के आम चुनाव संभवतः पूर्व में अब तक हुए सभी चुनावों की तुलना में कुछ ज़्यादा ही कटु वातावरण में होने की संभावना है। इसके लक्षण भी अभी से दिखाई भी देने लगे हैं।
क्या मणिपुर में निर्वस्त्र घुमाई गईं बेटियाँ 'शक्ति का रूप' नहीं?
- विचार
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- 20 Mar, 2024

लोकसभा चुनाव से पहले क्या धर्म की राजनीति की जा रही है? आख़िर शक्ति शब्द को लेकर इतना हंगामा क्यों? क्या अर्थ का अनर्थ बताकर जनसमस्याओं से ध्यान भटकाने का कुटिल प्रयास किया जा रहा है?
देश के समक्ष इस समय ताज़ातरीन मुद्दा इलेक्टोरल बॉन्ड सम्बन्धी घोटाले का है। महंगाई इस समय अभूतपूर्व रूप में अपने चरम पर है। विपक्षी दल वर्तमान केंद्र सरकार को चंद गिने-चुने उद्योगपतियों के हितों का संरक्षण करने तथा किसानों, मज़दूरों, कामगारों व ग़रीबों के विरुद्ध काम करने वाली सरकार बता रहे हैं। सत्ता पर कई प्रमुख केंद्रीय जाँच एजेन्सियों के दुरूपयोग का आरोप है। विपक्षी दल अग्निवीर योजना का विरोध कर इसे सैनिकों के जोश व उत्साह को ख़त्म करने वाली देश विरोधी योजना बता रहे हैं। विपक्षी दल पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। बेरोज़गारी देश की ज्वलंत समस्या है। परन्तु इन ज़रूरी विषयों से इतर बड़ी ही चतुराई से चुनाव का रुख़ 'धर्म' की तरफ़ मोड़ा जा रहा है।