हमारे देश में अग्निकांडों की भी एक लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त है। कोई बड़ी घटना होती है तो सुरक्षा उपायों को लेकर एक-दूसरे को कठघरे में खड़े करने का और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है। लेकिन कुछ ही समय बाद सब पहले जैसा हो जाता है। जो सवाल उठते हैं उनका ना तो कोई जवाब मिलता है और ना ही कोई उपाय होता दिखाई देता है। फिर कोई और हादसा होता है तो एक नई बहस छिड़ जाती है।

हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इतनी लचर अवस्था में हैं कि भीषण अग्निकांडों में किसी तरह बच गए लोगों को बचा पाने में भी वे सक्षम नहीं हैं।
इन बहसों से हटकर यदि हम यह देखने का प्रयास करें कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इस तरह के हादसे के बाद पीड़ितों के उपचार के लिए कितनी सजग हैं तो पायेंगे कि आयुष्मान भारत, विश्व गुरू, डिजिटल इंडिया या समर्थ भारत बनाने की बातें सिर्फ नारेबाज़ी ही हैं। हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इतनी लचर अवस्था में हैं कि भीषण अग्निकांडों में किसी तरह बच गए लोगों को बचा पाने में भी वे सक्षम नहीं हैं।