हमारे देश में अग्निकांडों की भी एक लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त है। कोई बड़ी घटना होती है तो सुरक्षा उपायों को लेकर एक-दूसरे को कठघरे में खड़े करने का और आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाता है। लेकिन कुछ ही समय बाद सब पहले जैसा हो जाता है। जो सवाल उठते हैं उनका ना तो कोई जवाब मिलता है और ना ही कोई उपाय होता दिखाई देता है। फिर कोई और हादसा होता है तो एक नई बहस छिड़ जाती है।