केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नागरिकता संशोधन विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। इस विधेयक में पड़ोसी देशों से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। वर्तमान में मौजूद नागरिकता अधिनियम-1955 अवैध प्रवासियों के भारत में नागरिकता लेने के दावों को मान्यता नहीं देता है। इस विधेयक में ग़ैर-मुसलिमों के लिए नेचुरलाइज़ेशन द्वारा नागरिकता हासिल करने की शर्तों में ढील देने का प्रस्ताव है। नेचुरलाइज़ेशन एक क़ानूनी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी दूसरे देश के नागरिक को नागरिकता या राष्ट्रीयता दी जाती है। मौजूदा क़ानून के अनुसार, किसी व्यक्ति को नागरिकता पाने के लिए आवेदन की तिथि से बारह महीने पहले की अवधि तक भारत में निवास करना ज़रूरी है और उसके पहले चौदह वर्षों में से ग्यारह वर्ष तक भारत में रहना चाहिए। संशोधन विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 3(1) में एक नया (डी) प्रवाइज़ो लगा कर ग्यारह वर्ष की अवधि को घटा कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर मुसलिम शरणार्थियों के लिए छह वर्ष करने का प्रस्ताव है। इस विधेयक को संभवतः 9 दिसम्बर को लोकसभा में पेश करने की सम्भावना है।
नागरिकता संशोधन विधेयक भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर एक दाग़?
- विचार
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- 6 Dec, 2019

उत्तर-पूर्व के राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नागरिकता संशोधन विधेयक भारत के विश्वव्यापी धर्मनिरपेक्ष छवि पर एक बदनुमा दाग़ की तरह होगा। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ सिद्धांत की व्याख्या और विश्व गुरु बनने का सपना क्या इसी तरह के क़ानून बना कर पूरा किया जाएगा?