नोटबंदी और जीएसटी की मार से छोटा और मध्यम कारोबारी तबक़ा अभी भी नहीं उबर पाया है। उसका कारोबार या तो ठप पड़ा हुआ है या ख़त्म हो गया है। सरकारी और सहकारी बैंकों को अरबों रुपये का चूना लगाकर बेईमान उद्योगपतियों के विदेश भाग जाने का सिलसिला जारी है। महंगाई की मार से आम आदमी त्रस्त है। किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। नौकरियां ख़त्म होने की वजह से बेरोजगारों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। देश की आर्थिक समृद्धि का सूचक समझा जाने वाले शेयर बाज़ार का सूचकांक गिरने के नित-नए कीर्तिमान बना रहा है। इसके अलावा भुखमरी की वैश्विक स्थिति में भारत का स्थान और नीचे खिसक चुका है। ये सभी ख़बरें हमारी तथाकथित मजबूत अर्थव्यवस्था को मुंह चिढ़ा रही हैं। इन्हीं दारुण खबरों के बीच देशवासी इस बार दीपावली मना रहे हैं। दूसरी ओर, बाज़ार की बड़ी ताक़तें, समाज का खाया-अघाया तबक़ा और सामाजिक सरोकारों से पूरी तरह कट कर मुनाफ़ाखोरी की लत का शिकार हो चुका मीडिया और इन सबसे ऊपर सत्तारुढ़ वर्ग, सब मिलकर माहौल यही बना रहे हैं कि देश में सब कुछ सामान्य है और लोग उत्साह से दिवाली मनाने में मगन हैं।

जब देश में आर्थिक हालात बेहद ख़राब हों तो दीपावली का जश्न फ़ीका लगता है। लेकिन मीडिया और सत्तारुढ़ वर्ग यह बताने की कोशिश कर रहा है कि देश में सब कुछ सामान्य है।