पिछले कुछ दिनों से जब किसी जानने वाले का फ़ोन आता है तो डर लगने लगता है। न जाने कौन सी मनहूस ख़बर आ जाए। इतना डर, इतना ख़ौफ़ पहले कभी नहीं देखा। हर तरफ़ मायूसी और उदासी। बेबसी और विवशता का आलम यह है कि न किसी से कुछ कहते बनता है और न ही यह यक़ीन होता है कि कुछ कहने से कुछ हो पाएगा।