विगत गुरुवार हिंदी के प्रमुख अख़बार 'दैनिक जागरण' के आगरा संस्करण के चीफ़ सब एडिटर पंकज कुलश्रेष्ठ कोरोना के विरुद्ध युद्ध हार गए। संभव है पंकज यह लड़ाई जीत जाते लेकिन कोविड-19 को लेकर सारे देश में कुख्याति बटोर चुके आगरा के क्रूर और लापरवाह चिकित्सा और प्रशासकीय तंत्र ने मिलकर उन्हें परास्त हो जाने को मजबूर कर दिया। शुरू के 4-5 दिन वह अपनी जाँच के लिए यहाँ से वहाँ गिड़गिड़ाते घूमते रहे। किसी तरह ढेरों 'सोर्स' और 'सिफ़ारिशों' के बाद आख़िरकार जब जाँच हुई भी तो एक सप्ताह तक जाँच रिपोर्ट नहीं आयी। रिपोर्ट आयी तो शुरू के 2-3 दिन उनका ग़ैर-ज़िम्मेदाराना इलाज चला। अंतिम दो दिन ज़रूर उन्हें वेंटिलेटर प्रदान करने के सम्मान से नवाज़ा (!) गया लेकिन तब तक वायरस उनके भीतर सुरसा रूप ग्रहण कर चुका था। अंततः उन्हें 'कोविड वॉरियर' का शहादतनामा जबरन स्वीकार करना पड़ा।
एक पत्रकार की मौत, एक कोरोना वॉरियर का क्रूर शहादतनामा
- विचार
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- अनिल शुक्ल
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- 8 May, 2020


अनिल शुक्ल
रोज़ सुबह एडिटोरियल मीटिंग में यह सोचकर वह जाता है कि सम्पादक जी और जीएम सर से पूछेगा कि ऐसे मौक़े पर, जबकि वह और उस जैसे उसके दूसरे साथी जान हथेली पर रखकर अपने कर्तव्य पालन को जूझ रहे हैं, उन्हें अतिरिक्त भत्ते मिलने की जगह आधी तनख्वाह में क्यों सिमटाया जा रहा है? कुछ पूछने से पहले ही संपादक जी और जीएम सर उसी से पूछ बैठते हैं- कोरोना के चक्कर में विज्ञापन और सर्कुलेशन लगातार गिरते जा रहे हैं, क्या करना चाहिए?
- Pankaj Kulshrestha
- Anil Shukla
- Journalists Exposed to Coronavirus