कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते ही एक तो जननायक की छवि उभरती है और दूसरी ओर पिछड़ों को 4 प्रतिशत और अति पिछड़ों को 8 प्रतिशत आरक्षण देने का फार्मूला उभरता है। लेकिन आज राजनीति और ज्ञान की जो परंपरा बन गई है उसमें उनके जननायक वाले चरित्र को भुला दिया जाता है और जहां भी देखो वहीं उनके आरक्षण फार्मूले की चर्चा होती है। अक्सर यही कहा जाता है कि देखो नीतीश कुमार उसी फार्मूले पर राज कर रहे हैं। संख्या बल, धनबल और बाहुबल के आधार पर चलने वाली उपभोक्तावादी और भ्रष्ट राजनीति के इस दौर में उनका मूल्यांकन इससे कुछ अधिक होगा इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देना आसान है, उनके रास्ते पर चलना बहुत मुश्किल
- विचार
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- 24 Jan, 2024

कर्पूरी ठाकुर ने मुख्यमंत्री रहते हुए कभी निजी कार्यक्रमों के लिए सरकारी वाहनों का उपयोग नहीं किया। रांची में एक शादी में जाना था तो टैक्सी से गए। एक बार वे एक कार्यक्रम में फटा हुआ कुर्ता पहन कर गए तो चंद्रशेखर ने उनके लिए कुर्ता खरीदने हेतु वहीं चंदा करके धन दिया।
आज जब न्यायप्रिय, लोकतांत्रिक और सद्भावपूर्ण भारत का सपना पीछे छूट गया हो और 2047 तक विकसित राष्ट्र, विश्वगुरु और हिंदू राष्ट्र का स्वप्न दिखाया जा रहा हो तब कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय के लिए आर्थिक और सामाजिक क्रांति के आह्वान को कौन सुनेगा।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।