कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते ही एक तो जननायक की छवि उभरती है और दूसरी ओर पिछड़ों को 4 प्रतिशत और अति पिछड़ों को 8 प्रतिशत आरक्षण देने का फार्मूला उभरता है। लेकिन आज राजनीति और ज्ञान की जो परंपरा बन गई है उसमें उनके जननायक वाले चरित्र को भुला दिया जाता है और जहां भी देखो वहीं उनके आरक्षण फार्मूले की चर्चा होती है। अक्सर यही कहा जाता है कि देखो नीतीश कुमार उसी फार्मूले पर राज कर रहे हैं। संख्या बल, धनबल और बाहुबल के आधार पर चलने वाली उपभोक्तावादी और भ्रष्ट राजनीति के इस दौर में उनका मूल्यांकन इससे कुछ अधिक होगा इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।