“जिस देश में अपने अतीत की चेतना न हो, उसका कोई भविष्य नहीं हो सकता। इसी तरह यह भी महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र अपने अतीत को प्राप्त करने की न सिर्फ़ क्षमता विकसित करे बल्कि, उसे यह भी जानना चाहिए कि अपने भविष्य को आगे बढ़ाने के लिए अतीत का कैसे उपयोग किया जाए।”
हिंदुत्व के आराध्य नेता सावरकर की ये पंक्तियाँ ऐसे वक्त में अनायास ही याद आ जाती हैं, जब पाँच अगस्त को राम मंदिर के निर्माण की औपचारिक शुरुआत होती है। अतीत क्या है ये एक सवाल है। क्या अतीत को पकड़ कर बैठने से ही देश का कल्याण होगा। क्या अतीत की ग़लतियों को ठीक करने के लिए देश को एक सतत युद्ध में झोंके रखना ही राष्ट्रधर्म है या राष्ट्रधर्म ये भी है कि अतीत से सीख कर आगे बढ़ें और नए भारत के निर्माण में नए संप्रत्ययों की खोज करें।























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