पचास साल से ज़्यादा का वक्त होने आया ! जिस एक व्यक्तित्व का चेहरा देश के इन कठिन दिनों में सबसे अधिक स्मरण हो रहा है, जिसकी छवि आँखों की पुतलियों में तैर रही हैं वह जयप्रकाश नारायण (जेपी ) का। ऐसा होने के पीछे कुछ ईमानदार कारण भी हैं !
जेपी ने पूछा था: ‘आंदोलन क्या बूढ़े चलाएँगे?’
- विचार
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- 11 Oct, 2022

जेपी और प्रभावती जी के साथ जून 1972 में चूरू (राजस्थान) की यात्रा पर निकलते वक्त पुरानी दिल्ली के प्लेटफ़ार्म पर उपस्थित लोग अपने आप को आश्वस्त नहीं कर पा रहे थे कि ट्रेन की प्रतीक्षा में बिना किसी सुरक्षा और भीड़ के खड़े हुए शख़्स लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी हो सकते हैं!
साल 1972 में जेपी के समक्ष हुए दस्युओं के ऐतिहासिक आत्म-समर्पण के पहले चम्बल घाटी में बिताया गया लगभग तीन महीने का समय और फिर 1974 में बिहार आंदोलन के दौरान जेपी के सान्निध्य में गुज़र एक लम्बा अरसा, उनके साथ विमान, ट्रेन और कार में कीं गईं यात्राएँ आज भी स्मृतियों में ज्यों की त्यों क़ायम हैं।
हाल ही की एक यूट्यूब चैनल की बहस में मैंने ज़िक्र किया था कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान मैसूर में भारी बारिश के बीच ज़रा भी विचलित हुए बिना भाषण करते बावन साल के राहुल गांधी का चित्र जब दुनिया ने देखा और वायरल हुए उस सभा के वीडियो में हज़ारों ग़ैर-हिंदी भाषी श्रोताओं की भीड़ को निहारा तो मुझे 1974 के इलाहाबाद की एक ऐतिहासिक जनसभा की याद हो आई।