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मुजफ्फरनगरः संजीव बालियान बचा पाएंगे भाजपा का हिन्दुत्व?

यूपी के पहले चरण में होने वाले चुनाव में मुजफ्फरनगर सबसे प्रमुख सीट है। यहां से अगर भाजपा प्रत्याशी संजीव बालियान तीसरी बार जीतते हैं तो भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति पर पश्चिमी यूपी में फिर से मुहर लग जाएगी। लेकिन यह सब इतना आसान नहीं है। मुकाबले में सपा ने पूर्व राज्यसभा सदस्य हरेंद्र मलिक को उतारा है जो चौधरी चरण सिंह का नाम लेकर मैदान में उतरे हैं। बसपा प्रत्याशी ने इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश की है लेकिन फिलहाल भाजपा-कांग्रेस की सीधी लड़ाई साफ दिखाई दे रही है। 
2019 के लोकसभा चुनाव में, बालियान राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) प्रमुख चौधरी अजीत सिंह के खिलाफ 4,000 से कम वोटों के बेहद कम अंतर से जीते थे। दिवंगत अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी अब भाजपा के साथ हैं। हालांकि उन्होंने इस चुनाव में बालियान के लिए कोई खास प्रचार नहीं किया है लेकिन आरएलडी चूंकि अब एनडीए में है, इसलिए अब भाजपा के लिए चवन्नियों का भी महत्व हो गया है। आरलडी प्रमुख जयंत ने पिछले दिनों बयान दिया था कि वो कोई चवन्नी नहीं हैं, जो भाजपा में मिल जाएंगे। 
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कैसे बदले समीकरण

आरएलडी, जो 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान सपा और बसपा के साथ और 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा के साथ गठबंधन में थी, ने इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन किया है। बताते हैं कि मुज़फ़्फ़रनगर सीट को लेकर ही सपा-आरएलडी गठबंधन टूटा। जयंत यह सीट चाहते थे। लेकिन सपा ने मना कर दिया। जयंत ने भाजपा का रुख किया, वहां संजीव बालियान को भाजपा क्यों हटाती। हालांकि सपा मुजफ्फरनगर सीट आरएलडी को देने को तैयार थी, लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मांग थी कि हरेंद्र मलिक रालोद के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ें, यह सुझाव जयंत चौधरी के लिए कड़वी गोली की तरह था। इसके चलते गठबंधन टूट गया।   
कुल मिलाकर मुजफ्फरनगर सीट पर बदले समीकरण में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता चरम पर है। शह और मात का खेल चल रहा है। संजीव बालियान को आरएलडी प्रभाव वाले और राजपूत प्रभाव वाले गांवों में जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा है। एक गांव में तो बालियान की गाड़ियों के शीशे तक तोड़ दिए गए। राजपूतों ने पहले ही पंचायत करके भाजपा प्रत्याशी को वोट न देने का फैसला कर लिया है। 

2022 का प्रदर्शन

2022 में किसान आंदोलन के कारण पश्चिमी यूपी में माहौल सपा-आरएलडी के पक्ष में था। नतीजा यह निकला कि यूपी विधानसभा चुनावो में उनकी जीत हुई। लेकिन इस बार मामला अलग है। किसान नेता राकेश टिकेत-नरेश टिकैत ने संजीव बालियान के लिए खुलकर वोट की अपील नहीं की है। न ही उन्होंने सपा के हरेंद्र मलिक के लिए अपील की है। टिकैत बंधु अगर भाजपा प्रत्याशी का समर्थन करते हैं तो उनकी भारतीय किसान यूनियन से जुड़े मुसलमान नाराज हो सकते हैं। पश्चिमी यूपी के जाट बेल्ट में जाट और मुसलमान तमाम जगहों पर मिलकर वोट करते हैं। यही भाईचारा 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में टूट गया था, जिसके लिए आज भी संजीव बालियान और संगीत सोम को जिम्मेदार ठहराया जाता है।
मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में सपा-रालोदगठबंधन 2022 में तीन सीटें हासिल करने में कामयाब रहा था, जबकि भाजपा ने दो सीटें जीतीं थी। इसके बाद खतौली उपचुनाव में बीजेपीरालोद से एक और सीट हार गई, जिससेगठबंधन के पक्ष में सीटें 4-1 हो गईं। हालाँकि, बाद के घटनाक्रम में, आरएलडीने भाजपा के साथ गठबंधन करने का फैसलाकिया। लेकिन मुस्लिम मतदाताओं का एक महत्वपूर्ण प्रतिशत, जो लोकसभा के कुल मतदाताओंका लगभग 39 प्रतिशत है, औरजाटों के एक गुट ने भाजपा के साथ गठबंधन करने के जयंत चौधरी के फैसले पर निराशा औरअसंतोष व्यक्त किया।
मुज़फ़्फ़रनगर में, जाट कुल मतदाता आधार का लगभग 18 प्रतिशत हैं। लगभग 14 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दलित वोट बैंक भी निर्वाचन क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, गुर्जर और ठाकुर समुदायों के पास लगभग 10 प्रतिशत वोट हैं। प्रजापति, सैनी और त्यागी सहित अन्य जाति-आधारित समुदाय, निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव के अंतिम परिणाम को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण हैं।  
बसपा ने बड़ी होशियारी से मुजफ्फरनगर सीट पर प्रजापति उम्मीदवार दारा सिंह प्रजापति को मैदान में उतारा है। यह कदम संभावित रूप से भाजपा के लिए चिंता का कारण बन सकता है, क्योंकि प्रजापति को अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मतदाताओं से समर्थन मिल सकता है। 

मुजफ्फरनगर शहर में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच साझाआम सहमति सपा के उम्मीदवार की ओर नजर आ रही है। उन्हें 2013 के सांप्रदायिक दंगे अच्छी तरह यादहैं, जिसने शहर मेंसद्भाव और प्रगति को काफी हद तक बाधित कर दिया था। कई लोगों ने ऐसे विभाजनकारी समयको दोबारा न देखने की इच्छा व्यक्त की। 


राजनीतिक प्रभाव    

बीजेपी के बालियान की जीत सिर्फ चुनावी जीत से कहीं ज्यादा मायने रखेगी। यह क्षेत्र में उनके राजनीतिक प्रभुत्व को मजबूत करेगा, जो उनकी लगातार तीसरी जीत होगी। इसके अलावा, यह रालोद-भाजपा गठबंधन की ताकत और सहनशक्ति की पुष्टि करेगा। वहीं, अगर सपा के मलिक जीतते हैं तो इससे कई पूर्व स्थापित धारणाएं टूट जाएंगी। इससे एक स्पष्ट संदेश जाएगा कि जाटों के प्रभुत्व के लिए जानी जाने वाली सीट चौधरी चरण सिंह के परिवार की सहायता के बिना हासिल की जा सकती है, जो जाट राजनीति में काफी प्रभाव रखते हैं। 
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सपा के हरेंद्र मलिक की जीत भाजपा के लिए एक बड़ा झटका होगी, जिससे साबित होगा कि चौधरी परिवार जैसी प्रमुख क्षेत्रीय ताकत के साथ गठबंधन को भी चुनौती दी जा सकती है और हराया जा सकता है।   मुजफ्फरनगर में आगामी लोकसभा चुनाव का परिणाम निस्संदेह पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति की भविष्य की दिशा तय करेगा।
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क़मर वहीद नक़वी
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