जब पूरा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है तो दिल्ली पुलिस अपने पुराने एजेंडे के साथ काम पर लग गई है। उसने सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों पर मनगढ़ंत आरोप लगाकर गिरफ़्तारियों का अभियान छेड़ दिया है। दो छात्रों पर उसने दिल्ली दंगों की साज़िश में शामिल होने, हत्या और राजद्रोह का आरोप लगा दिए हैं।
होर्डिंग्स लगाने के मामले में हाई कोर्ट से योगी सरकार को झटका लगा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को फ़ैसला सुनाया है कि इन होर्डिंग्स को हटा दिया जाए।
दिल्ली में हुई हिंसा क्या अचानक हो गई? नहीं, इसके लिये लंबे समय से तैयारी की जा रही थी। हिंदू जातियों विशेषकर जाटों के बीच इसलाम के ख़िलाफ़ प्रचार किया जा रहा है।
दिल्ली में दंगों के एक नये वीडियो में दिख रहा है कि एक हॉस्पिटल की छत पर कब्जा करे बैठे दंगाई नीचे खड़ी भीड़ पर फ़ायरिंग कर रहे हैं और बोतलें फेंक रहे हैं।
हर्ष मंदर या रवीश कुमार, हमारे समाज में विलेन क्यों हैं? क्यों हमने समाज में एक-दूसरे के लिये नफ़रत के ऐसे पहाड़ पाल लिये हैं कि सदियों पुराना साथ चुभने लगा है। क्यों हम समाज में किसी को इसलिये निशाने पर ले लेते हैं कि उसकी संख्या कम है या उसका विचार हमारे विचार से मेल नहीं खाता। ऐसे ही तल्ख सवालों को पेश कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह।
क्या दिल्ली में दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के पास पर्याप्त संख्या में जवान नहीं थे। अगर जवान होते तो क्या प्रदर्शनकारियों की भीड़ पुलिस पर पत्थर बरसा पाती?
कई मुसलिम राष्ट्रों के बाद ईरान ने दिल्ली के दंगों को लेकर आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि ईरान भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई संगठित हिंसा की निंदा करता है।
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और अन्य लोगों, जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिये उनके ख़िलाफ अदालत एफ़आईआर करने का आदेश दे।