बदहाल पर्यावरण की स्थिति व समस्याओं को भारत की सरकार स्वीकारने के बजाय उन्हें नकारने में क्यों लगी हुई है? क्या समस्या का हल इस दृष्टिकोण से निकल सकता है?
नई तरह की राजनीति करने आए आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने निराश किया है। 8 जाड़े गुजर चुके हैं और हर बार जाड़े में दिल्ली की आबोहवा खराब हो जाती है। अगर किसी पार्टी की चिन्ता पर्यावरण को लेकर नहीं है तो वो क्या खाक राजनीति करेगी। पर्यावरणीय खतरों पर वंदिता मिश्रा के चुभते सवालों के साथ उनका यह लेखः
सदगुरु जग्गी फाउंडेशन के ईशा फाउंडेशन को पर्यावरण क्लीयरेंस लेने की जरूरत नहीं है। यह बात केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में कही है। आरोप है कि तमिलनाडु में नियम तोड़कर ईशा फाउंडेशन निर्माण कार्य करा रहा है। वहां की सरकार ने इस पर रोक लगाई थी। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र के पर्यावरण कानून का हवाला दिया था। जग्गी गुरु के एनजीओ ने कोर्ट में मामले को चुनौती दी, जहां केंद्र सरकार ने उसके पक्ष में बोला।
क्या ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है जिसमें तापमान अगले कुछ दशकों में औसत रूप से क़रीब 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाए? आख़िर भारत में पर्यावरण नुक़सान से बचने के लिए क्या किया जा रहा है? पर्यावरण सूचकांक में भारत फिसड्डी क्यों है?
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन क्यों किया जा रहा है? नियमों का उल्लंघन करने वालों को जेल की सजा क्यों हटाई जा रही है? क्या जुर्माने की राशि बढ़ाने से कुछ हासिल होगा?
मौसम अब असमान्य व्यवहार क्यों कर रहा है? तापमान क्यों बढ़ता जा रहा है और पेड़ों की कटाई व बेतरतीब औद्योगीकरण का क्या असर हो रहा है? क्या धरती ऐसे बोझ का सहन कर पाएगी?
वर्षों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहाँ मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। वनों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश के वन क्षेत्र का सिकुड़ना पर्यावरण की दृष्टि से बेहद चिंताजनक है।
बनारस, पटना भारी बरसात का सामना न कर सके। केरल बीते दो सालों से बारिश से तबाह है। राजस्थान तक में बाढ़ आई। प्रकृति को नाराज़ करने का इंसानी प्रयोग पृथ्वी से जीवन का नामोनिशान मिटा सकता है। देखिए शीतल के सवाल में पर्यावरण पर यह ख़ास रिपोर्ट।
अवैध खनन, जंगलों के कटने, बांधों के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले, साफ़ पानी और साफ़ हवा की माँग करने वालों पर पुलिस, भूमाफिया और सरकारी संरक्षण प्राप्त हत्यारे गोली चलाते हैं। यानी पर्यावरण संरक्षण भी जानलेवा साबित हो रहा है।