क्या जातिभेद ख़त्म करके ‘विशुद्ध भारतीय’ बनने की चुनौती के सामने भारतीय समाज के सभी अंगों ने आत्मसमर्पण कर दिया है? और मीडिया इसे किस रूप में ले रहा है?
भारतीय पत्रकारिता का एक लंबा दौर रहा है जिसने रामनाथ गोयनका जैसे जुझारू मालिक के साथ राहुल बारपुते ,बीजी वर्गीज ,मुलगांवकर ,कुलदीप नैयर ,प्रभाष जोशी ,राजेंद्र माथुर ,एसपी सिंह जैसे दिग्गज पत्रकारों का दौर देखा है .इसके बाद भी सत्ता से दो दो हाथ करने वाले पत्रकारों का दौर आया .क्या यह दौर खत्म हो जाएगा ?
सांप्रदायिक प्रोग्राम के लिए न्यूज़18 पर पचास हज़ार का जुर्माना क्या काफ़ी है? क्या सांप्रदायिक ऐंकरिंग करने वाले अमन चोपड़ा को कड़ा दंड नहीं मिलना चाहिए? आख़िर अमन चोपड़ा जैसे ऐंकरों को चैनल रखते क्यों हैं? बार-बार ज़हर फैलाने की हरकतों के बावजूद उन्हें बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखाते?
दलितों और पिछड़ों के साथ जैसा भेदभाव समाज में होता है, क्या वैसा ही भेदभाव मीडिया में भी होता है? यदि मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व नहीं होगा तो उनके मुद्दे क्या सही से उठेंगे?
क्या मुख्यधारा का मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा रहा है? क्या बेरोज़ग़ारी, ग़रीबी, महंगाई जैसे मुद्दों पर डिबेट होती है या सत्ता पक्ष से सवाल किया जाता है? यदि नहीं तो क्यों?
अरब देशों की नाराजगी महंगी पड़ी। बीजेपी ने अपने दो प्रवक्ताओं को कुर्बान किया। नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल को अब परिवार की सुरक्षा की चिंता। लेकिन उनके इस हाल का जिम्मेदार कौन है?
देश में नफ़रत फैलाने में मीडिया कितना ज़िम्मेदार है? क्या मीडिया इस रूप में इसलिए है कि इन मीडिया हाउसों के मालिक उद्योगपति हैं और उद्योगपतियों की सत्ता से काफ़ी नज़दीकी होती है?
पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आए तो पता चला कि तमाम गंभीर मुद्दे गौण हो गए और जनता ने भावनाओं में बहकर मतदान किया। लेकिन क्या इससे वो मुद्दे खत्म हो गए। जानिए ये सब क्यों हुआ।
कृषि कानूनों की वापसी के बाद मीडिया अंधभक्तों की तरह व्यवहार क्यों कर रहा है टीवी के ऐंकर इस कदर खिसियाए और झेंपे हुए क्यों हैं कृषि कानून वापस लेने पर वे प्रधानमंत्री मोदी तक से नाराज़ क्यों दिख रहे हैं किसानों के ख़िलाफ़ कुत्सित अभियान चलाने के लिए वह उनसे और देशवासियों से कब माफ़ी मांगेगा
यूपी में मीडिया रोज सवाल उठाता था कि विपक्ष कहां हैं ,पर सरकार कहां है यह सवाल नही उठाया कभी .लखीमपुर हादसे में दागी मंत्री से मीडिया न कोई सवाल पूछ रहा है न सरकार से .कब बर्खास्त होंगे टेनी ?कब गिरफ्तार होगा उनका पुत्र ?मीडिया की इसी एकतरफा भूमिका पर आज की जनादेश चर्चा
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आख़िर देश में पॉजिटिव मीडिया क्यों चाहते हैं? खुद संघ के मुखपत्र ‘पाँचजन्य’ द्वारा एक उद्योग समूह को राष्ट्र-विरोधी बताना कितनी सकारात्मक ख़बर है?
देश में आज मीडिया की हालत क्या है और आम नागरिकों के लिए यह कितना बड़ा नुक़सान है? अधिकतर सम्पादक न तो अपने पाठकों को बताने को तैयार है और न ही कोई उससे पूछना ही चाहता है कि ख़बरों का ‘तालिबानीकरण’ किसके डर अथवा आदेशों से कर रहे हैं?
चीफ जस्टिस एन वी रामन्ना ने कहा कि मीडिया का एक हिस्सा हर चीज़ को सांप्रदायिक रंग दे देता है। यह बात उन्होंने तबलीगी जमात और कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों के मामले में कही। उन्होंने कहा कि ऐसी चीजों से देश का नाम खराब होता है। साथ ही उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि समाचार माध्यमों में जिम्मेदारी गायब होती जा रही है। आलोक जोशी के साथ रामकृपाल सिंह, एन के सिंह, आशुतोष और हर्षवर्धन त्रिपाठी।