भारतवर्ष को दुनिया एक अध्यात्मवादी देश के रूप में भी जानती है। निःसंदेह संतों-पीरों-फ़क़ीरों और अनेकानेक अध्यात्मवादी महापुरुषों की इस पावन धरा पर चारों ओर आस्था और विश्वास का समुद्र हिलोरें मारता रहता है। परन्तु यही आस्था और विश्वास जब तक संयमित रहता है, इसके परिणाम सुखद,संतोषजनक व सौहार्दपूर्ण रहते हैं तभी तक इन्हें आस्था और विश्वास के रूप में देखा जा सकता है परन्तु जब इसी 'आस्था और विश्वास' के नाम पर हिंसा, क्रूरता, पशुता, राक्षसी प्रवृति, झूठा भय यहाँ तक कि हत्या और मानव बलि तक की बातें होने लग जायें तो इसे 'अंधआस्था और अंधविश्वास' के सिवा और क्या कहा जाये। परन्तु यह हमारे देश का एक कटु सत्य है कि संसार के इतने आधुनिक,वैज्ञानिक एवं तर्कशील हो जाने के बावजूद हमारे देश का एक बड़ा वर्ग अभी भी तांत्रिकों, ज्योतिषियों, काला जादू, बंगाली जादू, इंद्र जाल, सिफ़ली,दुआ ताबीज़,कण्डा-चिल्ला जैसे अनेक व्यसनों में उलझा हुआ है।
अन्धविश्वास यानी अशिक्षित एवं मूढ़ समाज की निशानी
- विविध
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- 29 Mar, 2025
भारत में जिस तेजी से अंधविश्वास बढ़ रहा है वो भारतीय समाज को मूढ़ और हताशा में बदल रहा है। लोग बिना मेहनत किए जादू टोने, झाड़ फूंक के जरिए सबकुछ पाना चाहता है। लेखक, पत्रकार तनवीर जाफरी ने ऐसे खतरों से आगाह करने की कोशिश की है।
