1993 के 73वें और 74वें संविधान संशोधनों ने एक तरफ महिला सशक्तिकरण को भारतीय लोकतंत्र की हर दीवार पर गोदने का काम किया ताकि महिलाओं को राजनीति व समाज के केंद्र में लाने के लिए किसी धर्म ग्रंथ, धर्म गुरु व ‘सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं’ की ‘रहमत’ पर न रहना पड़े तो दूसरी तरफ इस संशोधन ने 15 लाख से अधिक महिला राजनेताओं की ऐसी शक्ति को जन्म दे दिया है जिसे पीछे करना या धक्का देना अब लगभग असंभव है। इतनी मजबूत व बढ़ती हुई महिला नेतृत्व शक्ति के बावजूद बलात्कार व सामूहिक बलात्कार एक आम घटना बनती जा रही है।
बृजभूषण को नहीं रोक पा रहे तो पीएम महिलाओं को ‘गारंटी’ कैसे देंगे?
- विमर्श
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- 31 Dec, 2023

अब विनेश फोगाट ने भी खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड लौटा दिया। क्या पुरुषों में महिला अपराधों को लेकर कानून का डर ‘शून्य’ है, बलात्कार को लेकर मीडिया में चर्चा ‘शून्य’ है, संसद में भी इस मुद्दे पर बहस ‘शून्य’ है?
2013 के ‘निर्भया’ कांड के बाद जिस सामाजिक चेतना का जन्म हुआ था वो ‘कठुआ’ व अलीगढ़ जैसे मामलों में सोती रही। लगता है कि अब बलात्कार कोई मुद्दा नहीं है। जब भारत के गौरव के लिए, भारत के झंडे को लेकर दुनिया भर में चलने वाली महिलाओं के यौन शोषण पर भारतीय समाज नहीं जाग पाया तो उसे ‘मृत’ कहना ही उचित होगा। भारतीय जनता पार्टी, जो इन दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देखरेख में कार्य कर रही है, के लोकसभा सांसद बृजभूषण शरण सिंह, खुलेआम महिला पहलवानों के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करके व यौन शोषण के बावजूद पार्टी में बने रहने के योग्य है तो भारत की महिलाओं को सुरक्षा कैसे मिलेगी? भारत के प्रधानमंत्री अपनी ही पार्टी के इस सांसद को पार्टी से बाहर का रास्ता नहीं दिखा पा रहे हैं तो महिलाओं के खिलाफ अपराध कैसे रुकेंगे? नरेंद्र मोदी भारत की महिलाओं को ‘गारंटी’ कैसे देंगे?