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यह, वह भारत नहीं जिसकी तरफ विश्व देख रहा है!

जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया स्पेसक्राफ्ट, आदित्यL1 अपने मुकाम पर पहुँच गया है। इसे लैगरेन्जियन पॉइंट(L1) में पहुँचने में 127 दिनों का समय लगा। पृथ्वी से L 1 तक की पूरी यात्रा को विज्ञान की मदद से आसानी से ट्रैक किया जा सकता था। वैज्ञानिकों को हमेशा मालूम होता था कि 15 लाख किमी की यात्रा पर निकला यह स्पेसक्राफ्ट कब, कहाँ और किस स्थिति में है। कमोबेश यही स्थिति चंद्रयान मिशनों और अन्य वैज्ञानिक गतिविधियों में रहती है। विज्ञान और वैज्ञानिक सोच का फायदा ही यही है कि हमेशा यथास्थिति का पता रहता है, अंधकार कम होता है। किसी भी राष्ट्र के नेतृत्व व उसके भविष्य के लिए वैज्ञानिक सोच वाला व्यक्ति बहुत अहम होता है। भारत का संविधान भी आम नागरिकों से वैज्ञानिक सोच की आशा करता है। लेकिन यदि किसी भी देश के राजनैतिक नेतृत्व में वैज्ञानिकता और दायित्वबोध की जगह लफ्फाजी ले ले तो उसका भविष्य संकट में पड़ सकता है।

लफ्फाजी के साथ समस्या यही है कि इसे ट्रैक करना असंभव है और यदि ट्रैक भी कर लिया जाए तब भी इसे अपने हित के लिए तोड़ मरोड़ कर पेश कर दिया जाता है। 

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भारत के विदेश मंत्री जी को ही ले लीजिए। उनका कहना है कि भारत को आने वाले समय में एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय भूमिका के लिए तैयार रहना चाहिए। विदेश मंत्री केरल में आरएसएस विचारक पी परमेश्वरन मेमोरियल व्याख्यान में ‘एक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था को आकार देने में भारत की भूमिका’ विषय पर बोलने गए थे। उन्होंने कहा कि “हमारे पड़ोसी हम पर भरोसा करते हैं, आज भी पूरा क्षेत्र हमारे प्रति सम्मान रखता है। आज विश्व का अधिकांश भाग यह देखता है कि भारत किस प्रकार प्रगति कर रहा है। हमारी उपलब्धियों पर नजर डालें। दुनिया वास्तव में हमारे लिए तैयार हो रही है। हमें ही बड़ी भूमिका के लिए तैयारी करने का प्रयास करना है।”

विषय अपने आप में बहुत अहम है। लेकिन मुझे यह नहीं समझ आ रहा है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर को क्यों ऐसा लगता है कि उन्हे सुनने वाले लोग मुट्ठी भर ही होंगे। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो वो थोड़ा सोच समझकर बोलते। जब वो कहते हैं कि ‘हमारे पड़ोसी हम पर भरोसा करते हैं’ तब वो किस पड़ोसी की बात कर रहे होते हैं? भारत की भौतिक सीमा से लगे देश हैं- पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व म्यांमार और समुद्री सीमा से लगे देशों में मालदीव और श्रीलंका आदि। इसमें सबसे अहम देश चीन और पाकिस्तान हैं जो आधिकारिक रूप से परमाणु सम्पन्न राष्ट्र हैं अर्थात यह दोनो देश परमाणु शक्ति हैं। क्या ये दोनो देश भारत पर पूरा भरोसा करते हैं या विदेश मंत्री यह कहना चाहते हैं कि भारत इन पर भरोसा करता है? मुझे नहीं लगता उनका ऐसा कोई मतलब होगा। तब फिर वो ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं।
अफगानिस्तान में स्थितियाँ खराब हैं; चीन, भूटान और नेपाल जैसे देशों मेंआर्थिक व रणनीतिक पैठ बना रहा है। श्रीलंका यद्यपि भारत का समर्थन करता है इसके बावजूद चीन ने वहाँ अपना आर्थिक दबदबा कायम रखा हुआ है। नवंबर 2023 में मालदीव में हुए चुनावों के बाद नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने अपना रुख भारत से हटाकर साफ तौर पर चीन की ओर कर लिया है। चीन लगातार मालदीव में निवेश कर रहा है। मोहम्मद मुइज्जू ने अपने चुनावी वादे में कहा था कि राष्ट्रपति बनते ही वह ‘इंडिया फर्स्ट’ (भारत पहले) की अपनी नीति बदल देंगे और उन्होंने यही किया। उन्होंने पद संभालते ही लगभग 75 भारतीय सैन्य कर्मियों की एक छोटी टुकड़ी को मालदीव से हटा दिया। उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत की जगह तुर्की को चुना, साथ ही अगले सप्ताह वो हमारे पड़ोसी चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। 

यह बात सही है कि इससे पहले मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद सालेह थे और वो भारत समर्थक माने जाते हैं। अलग अलग राष्ट्रों में अलग अलग समय पर अलग अलग सरकारें बनती हैं। इसलिए वहाँ की नीतियों और वैदेशिक संबंधों में भी असर पड़ता है। हो सकता है अगली मालदीव सरकार भारत समर्थक आ जाए। पर समस्या है लगातार अपनी ‘पीठ थपथपाने’ की प्रवृत्ति से। अपने ही देश में खड़े होकर अपने ही नागरिकों को जब आप यह बताते हैं कि ‘हमारे पड़ोसी हम पर भरोसा करते हैं’ तो बात पचती नहीं है। यह एक ऐसी सूचना है जिसकी सत्यता पर तथ्यों का भरोसा कायम नहीं हो पाया है। अपने भाषणों और व्याख्यानों में वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने से भारत का लोकतंत्र मजबूत होगा। वैज्ञानिकता अर्थात तथ्यपरक दृष्टिकोण जिससे भारत की चहुँमुखी प्रगति, अगर हो रही है तो, उसे ट्रैक किया जा सके उसका आकलन किया जा सके।
जब आप कहते हैं “दुनिया वास्तव में हमारे लिए तैयार हो रही है। हमें ही बड़ी भूमिका के लिए तैयारी करने का प्रयास करना है”, तो आपको खुद को इसके लिए साबित करना होता है। इस समय दुनिया में दो बड़े संकट हैं जहां भारत अपनी निर्णायक भूमिका अदा कर सकता था लेकिन असफल रहा। पहला इज़राइल -हमास संघर्ष, जहां इज़राइल पर हमास के हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी पूरी सहानुभूति इज़राइल के साथ दिखाई। भारत ने साफ किया कि वह हिंसा के खिलाफ है लेकिन अब तक इस युद्ध में मारे जा चुके 45 हजार से ज्यादा गजा के नागरिक जिसमें बच्चे भी शामिल हैं, भारत कोई भी सख्त टिप्पणी करने से चूक गया है।

‘तीसरे विश्व’ के देश साफ तौर पर यह देख सकते हैं कि एक समय अपनी अलग सोच वाली विदेश नीति रखने वाला भारत मध्य-पूर्व में जो नीति अपना रहा है वह वास्तव में अमेरिका के नेतृत्व वाले फ्रेमवर्क का हिस्सा भर है और कुछ नहीं है। आखिर यह कैसा भारत बन गया है जो हिंसा का विरोध करने के लिए इज़राइल के साथ तो खडा हो जाता है लेकिन इज़राइल की सतत हिंसा को रोकने वाले संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव जिसमें ‘युद्ध-विराम’ की बात कही गई थी, उसके साथ खड़ा नहीं होता। एक तरफ नेहरू जैसा नायक था जिसे बच्चों से अगाध प्रेम था, दूसरी तरफ आज है;जब गाजा में हजारों बच्चों के मारे जाने के बाद भी ‘भारतीय संस्कार’ पोटली से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं। मुझे खेद है यह कहते हुये कि यह वह भारत नहीं है जिसकी ओर विश्व देख रहा है।
दूसरा बड़ा संकट रूस-यूक्रेन संघर्ष है। यहाँ भी भारत कोई भी निर्णायक भूमिका अदा नहीं कर सका है। यदि कोई देश वैश्विक संकटों में कोई पहल नहीं कर सकता है तब कैसे मान लेंगे कि विश्व उसकी तरफ देख रहा है। विदेश मंत्री का कहना है कि ‘भारत की उपलब्धियों पर नजर डालें’! उन्हे बताना चाहिये कि 80 करोड़ लोगों को राशन आश्रित करके वह दुनिया का ध्यान कहाँ खींचना चाहते हैं, अपने टॉप महिला एथलीटों को अपनी ही पार्टी के सांसद से न बचा पाने के बाद वह कौन सी उपलब्धियों पर चर्चा करना चाहते हैं। लोकतंत्र, भुखमरी, बहुआयामी गरीबी और प्रेस की स्वतंत्रता संबंधी वैश्विक सूचकांकों ने भारत की आंतरिक स्थिति को उघार दिया है, उसे ढंकने के लिए व्याख्यानमाला में तथ्यविहीन भाषण से काम नहीं चलेगा। वास्तव में विश्व जो देख रहा है वह यह है कि भारत कैसे एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र से ‘निर्वाचित निरंकुशता’ के रूप में बदल गया?

यह जरूर है कि चीन का आधिकारिक मीडिया भारत की प्रशंसा करने में लगा है। चीनी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ का कहना है कि भारत रणनीतिक रूप से अधिक सक्रिय और आत्मविश्वास से भर गया है। चीनी राष्ट्रपति के मुखपत्र इस अखबार को नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चलाए जाने वाला ‘भारत नेरेटिव’ भी काफी पसंद आया है। नरेंद्र मोदी सरकार को ‘भारत’ तब याद आया जब विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम ‘इंडिया’(INDIA) रख लिया। इस अखबार की इस खबर से कोई भी यह समझ सकता है कि चीन खुश है कि उसके पड़ोसी देश में ‘इंडिया बनाम भारत’ चल रहा है। वह खुश होगा कि जहां के संविधान बनाने वालों ने, देश को आज़ादी दिलाने वालों ने भारत और इंडिया को एक साथ रख कर देखा और एक ही समझा, वही देश आज दोनो को अलग रखकर देख रहा है। संभवतया चीन को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की होगी कि नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में बनी रहे। हो सकता है ग्लोबल टाइम्स की यही तारीफ वो चीज हो जिसे विदेश मंत्री ‘पड़ोसियों का भरोसा’ कह रहे हैं।
बड़े भरोसे के साथ ग्लोबल टाइम्स ने पीएम मोदी की विदेश नीति की प्रशंसा की है। यह वही विदेश नीति है जिसमें पीएम मोदी 19 जून 2020 को चीनी घुसपैठ पर स्वयं कहते हैं “न कोई हमारी सीमा में घुस आया है, न ही कोई घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है”। यह कहकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुश्मन देश चीन को ‘क्लीन चिट’ दे डालते हैं। जबकि सच इससे 180 डिग्री उल्टा है। आज से एक साल पहले जनवरी 2023 को दिल्ली में पुलिस महानिदेशकों/महानिरीक्षकों के वार्षिक अखिल भारतीय सम्मेलन के दौरान वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी (लेह-लद्दाख) पी डी नित्या द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट सामने रखी गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने पूर्वी लद्दाख में 65 पेट्रोलिंग पॉइंट्स (पीपी) में से 26 पर अपनी उपस्थिति खो दी है। मई 2020 के बाद से चीन भारत की कब्जाई गई, नई 2000 वर्गकिमी भूमि पर खुद पेट्रोल करता है भारत को नहीं करने देता है। 
काँग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि भारत उस जगह भी पेट्रोल नहीं कर पा रहा है जहां परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह का मेमोरियल बना हुआ है। इसके बावजूद अगर भारत चीन के साथ युद्ध अभ्यास करेगा तो चीन भारत की विदेश नीति से खुश क्यों नहीं होगा? जब भारत को ‘लाल आँखें’ दिखानी चाहिए तब मैत्री युद्ध अभ्यास होंगे तो क्या होगा? भारत सीमाओं पर कमजोर हो रहा है और चीन उसकी तारीफ कर रहा है, क्या यही वो भारत है जिसकी उपलब्धियों पर हमें नजर डालनी चाहिए। 

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विदेशमंत्री जयशंकर साहब शायद भूल गए कि यह सूचना युग है यहाँ कुछ नहीं छिपता। यह जरूर है कि किसी झूठ को लगातार तथ्य बनाकर पेश किया जाए और देश की जनता को वैज्ञानिक परक तथ्यों की बजाय लफ्फाजी से भर दिया जाए तभी भारत की ‘उपलब्धियों’, पड़ोसियों द्वारा ‘सम्मान’ और भारत के लिए नई ‘वैश्विक भूमिका’ की झूठी कहानी को सालों तक सुनाया जा सकता है। लेकिन इससे भारत का कद नहीं बढ़ेगा, झूठ और कमजोरी का कद बढ़ेगा। 

यह नेहरू का भारत है जहां भारत,एक पूरी तरह से नए सृजित किए गए तीसरे विश्व का, सर्वमान्य नेता बन गया था। किसी पश्चिमी ताकत का पिछलग्गू नहीं।अच्छा होगा यदि भारत के नेता भारत की झूठी छवि रचने से बचें और भारत के दुनिया भर में फैल रहे/सिकुड़ रहे फुट-प्रिन्ट की सटीक व तथ्यपरक जानकारी दें न कि अंधराष्ट्रीयता को अपने चुनावी लाभ के लिए फैलाएं।

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वंदिता मिश्रा
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