loader

तालिबान के इतनी जल्दी सत्ता पर क़ाबिज़ होने का राज़ क्या है? 

लोग बार-बार सवाल कर रहे हैं। मध्ययुगीन मदरसों में पढ़े और प्रशिक्षित हुए और मध्ययुगीन देहाती जैसे लगने वाले 70-75 हज़ार तालिबान इतिहास की सबसे बड़ी सैनिक और आर्थिक महाशक्ति के सामने 20 साल तक कैसे टिके रहे?

कैसे उसे मैदान छोड़ कर भागने पर मजबूर कर दिया? कैसे उस महाशक्ति द्वारा तैयार और लैस की हुई तीन लाख अफ़गान सेना को लड़े बिना ही मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर किया?

इन सवालों के उत्तर जानने के लिए तालिबान का जन्म कहाँ, क्यों और कैसे हुआ और उन्हें ख़त्म करने कभी महाशक्ति की मुहिम में क्या बड़ी कमियाँ रहीं, यह समझना ज़रूरी है।

 

ख़ास ख़बरें

मुजाहिद से उकताए लोग

अफ़गानिस्तान से सोवियत संघ को भगाने वाले मुजाहिद गुटों में सत्ता को लेकर लड़ाई छिड़ गई थी जिसे चलते हुए पाँच साल हो गए थे। सोवियत-मुजाहिदीन लड़ाई में अफ़गानिस्तान का इतना नुक़सान नहीं हुआ था, जितना मुजाहिदीन गृहयुद्ध के दौरान हुआ। अफ़गानिस्तान के लोग मुजाहिदीन की आपसी लड़ाई और भ्रष्ट नाकारा सरकारों से उकता चुके थे।

इसलिए उन्हें हटा कर अफ़गानिस्तान में एक सुन्नी इस्लामी अमीरी की स्थापना करने के लिए मुल्ला उमर ने सितंबर 1994 में पाकिस्तान के सुन्नी कट्टरपंथी मदरसों में पढ़े 50 नौजवानों का एक गुट बनाया जिसका नाम तालिबान रखा। 

मदरसे

स्थापना के समय 1947 में पाकिस्तान में कुल 189 मदरसे हुआ करते थे। पर उनकी संख्या अफ़गानिस्तान से सोवियत संघ को भगाने के लिए सऊदी अरब और दूसरे इसलामी देशों से आ रही ज़कात या चंदे की बाढ़ की वजह से बढ़कर 30-40 हज़ार तक पहुँच गई थी। अकेले बलोचिस्तान में ही 8,000 से ज़्यादा मदरसे थे।

इन में पढ़कर जिहादी बने नौजवानों की भर्ती होने में देर नहीं लगी और दो महीनों के भीतर ही तालिबान जिहादियों की संख्या 50 से बढ़कर 15,000 हो गई और उन्होंने कंधार सूबा फ़तह कर लिया। 
मुजाहिदीन सरकारों और गृहयुद्ध से उकताए लोगों ने तालिबान को हाथों-हाथ लिया और 1996 के मध्य तक उनकी सरकार बन गई।

यानी पहली बार सत्ता हथियाने में भी तालिबान को बहुत वक़्त नहीं लगा था। गठन के दो साल से भी कम समय में वे काबुल की गद्दी पर जा बैठे थे।

उज़्बेक, ताजिक, हज़ारा और खिल्जी पठान समुदायों के अब्दुल रशीद दोस्तम, अहमद शाह मसूद, इस्माइल ख़ान और गुलबुद्दीन हिक़मतयार जैसे सरदार अपने लंबे अनुभवों, सैनिक प्रशिक्षण और बरसों की लड़ाई के बावजूद काबुल की गद्दी नहीं हथिया पाए। 

जीत की वजह?

इसकी दो प्रमुख वजहें मानी जा सकती हैं। एक तो तालिबान को पाकिस्तान के मदरसों में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का प्रशिक्षण और दिशानिर्देश मिल रहा था। दूसरे, वे अफ़ागानिस्तान से भागकर पाकिस्तान में आ बसे अफ़गान शरणार्थियों के पठान समुदाय से हैं जो अफ़गानिस्तान का बहुसंख्यक समुदाय है और जो राजधानी काबुल, कंधार और उनके आस-पास के सूबों में रहता है।

इसके अलावा तालिबान की टक्कर दोनों बार ऐसी सरकारों से हुई है जो अपने भ्रष्टाचार और कुशासन की वजह से लोगों की नज़रों से गिर चुकी थीं। 

पाकिस्तान के चमन, कुचलाक, मर्दान, अकोरा खट्टक, मिरानशाह, पेशावर और सरगोधा जैसे सीमान्त शहरों और कराची, लाहौर, मुल्तान और इसलामाबाद जैसे मुख्य शहरों के मदरसे एकदम किले की तरह के हैं जिनके तहख़ानों में बम, गोला-बारूद और तरह-तरह के हथियार बनाए जाते हैं।

करोड़ों का धंधा

इन्हें सऊदी अरब, खाड़ी के देशों और दूसरे इसलामी देशों और संगठनों से हर साल करोड़ों रुपए की ज़कात मिलती है। नशीली दवा और हथियारों के धंधे से भी इन्हें मोटी कमाई होती है जिसका इस्तेमाल जिहादियों को प्रशिक्षण और पैसा देने में होता है।

पाकिस्तान में मदरसों की संख्या प्राइवेट पब्लिक स्कूलों से ज़्यादा है। इनमें कोई इब्न रश्द, अल ख़राबी और मोहम्मद इक़बाल जैसे दार्शनिक या रूमी जैसे सूफ़ी विचारक और कवि तैयार नहीं होते। 

तफ़सीर और हदीथ की कट्टरपंथी, वहाबी, देवबंदी व्याख्या पढ़ा कर मुल्ला उमर, मुल्ला मंसूर, अख़ुंदज़ादा, हक़्क़ानी और मुल्ला बरादर जैसे तालिबान और मुल्ला मसूद अज़हर और हाफ़िज़ सईद जैसे आतंकवादी तैयार किए जाते हैं।

पाकिस्तान में शरण

अमेरिका के दबाव में आकर दिखावे के लिए पाकिस्तान ने एक-दो बार इन मदरसों को मिलने वाले पैसे और इनमें चलने वाली जिहादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने का नाटक किया था। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने हमेशा इन्हें अपने छद्मयुद्ध की छावनियों और जिहादियों की पनाहगाहों के रूप में इस्तेमाल किया है। 

इसलिए अक्तूबर 2001 में अमेरिका  के हमलों से बचने के लिए तालिबान नेता और जिहादी और कहीं नहीं गए, पाकिस्तान में आकर छिप गए थे। पख़्तूनख़्वा, स्वायत्त कबाइली क्षेत्रों और बलोचिस्तान में रहने वाली बड़ी पठान आबादी के अलावा 14 लाख अफ़गान शरणार्थी भी पाकिस्तान में रहते हैं।

ISI, pakistan help taliban win afghanistan - Satya Hindi
इसलिए मदरसों के अलावा शहरों और गाँवों में छिपने की जगहों की कोई कमी नहीं है। बल्कि तालिबान ने पाकिस्तान की शह पर अल क़ायदा के आतंकियों को भी पनाह दी। ओसामा बिन लादेन पाकिस्तानी सेना और तालिबान की मिलीजुली कोशिशों से ही इतने साल पाकिस्तान में छिपे रहे। तालिबान नेता मुल्ला उमर की मौत भी लंबी बीमारी के बाद पाकिस्तान के एक सैनिक अस्पताल में ही हुई थी। 
पाकिस्तान भले नकारता रहे, लेकिन तालिबान की कार्यकारिणी रहबरी शूरा का मुख्यालय क्वेटा में ही है। इसीलिए उसे क्वेटा शूरा कहा जाता है। तालिबान के उपनेता सिराजुद्दीन हक़्क़ानी के हक़्क़ानी नेटवर्क का मुख्यालय उत्तरी वज़ीरिस्तान में है।

हक्क़ानी नेटवर्क

संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक प्रतिबंध जाँच समिति ने अपनी पिछले साल की एक रिपोर्ट में हक़्क़ानी नेटवर्क के शीर्ष नेताओं और अल क़ायदा नेता अल-जवाहीरी के बीच फ़रवरी 2020में हुई एक बैठक का रहस्योद्घाटन किया था।

यह बैठक आईएसआई के एक अफ़सर ने कराई थी। इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के ये दावे बिल्कुल थोथे हैं कि उन्होंने अल क़ायदा के ख़तरे का उन्मूलन कर दिया है और तालिबान अब जिहादी आतंकवादियों को अफ़गानिस्तान में अड्डे नहीं बनाने देंगे।

अब सवाल उठता है कि अमेरिका के करोड़ों डॉलर के ख़र्च, अरबों डॉलर के हथियारों, गाड़ियों और विमानों से बरसों के प्रशिक्षण के बाद तैयार हुई तीन लाख अफ़गान सेना बिना लड़े क्यों और कहाँ भाग गई? इसकी भी दो वजहें हो सकती हैं।

ISI, pakistan help taliban win afghanistan - Satya Hindi

सैनिकों ने पाला बदला

एक तो अफ़गान सेना ने अब तक अमेरिका सेना के नेतृत्व या देखरेख के बिना अपने बल-बूते पर तालिबान के साथ एक भी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी थी। अफ़गानिस्तान में भाड़े पर लड़ने और सौदे के लिए या ख़ानदानी लिहाज़ आड़े आते ही लड़ाई में पाला बदल लेने की रिवायत है।

जब तक अमेरिकी सेना कमान सँभाले हुए थी, अफ़गान सेना उनसे वेतन और सामान लेकर भाड़े की सेना की तरह तालिबान से लड़ती रही। उनके जाते ही उसने पाला बदल लिया और अब उसी साज़ो-सामान के साथ तालिबान के लिए लड़ेगी। दूसरी और बड़ी वजह भ्रष्टाचार हो सकती है। अमेरिका ने अपने सैनिकों के अलावा, रसद, प्रशासन, कर्मचारी सुरक्षा और रहने का सारा ठेका प्राइवेट कंपनियों को दे रखा था जो अमेरिकी सरकार से पैसा लेकर यह सारा प्रबंध करती थीं। 

जिस हज़ार करोड़ डॉलर के ख़र्च की बात की जाती है उसमें से अधिकांश पैसा इन प्राइवेट कंपनियों को मिला और उन्होंने स्थानीय लोगों से ठेके पर माल लिया और काम करवाया। इन ठेकों में भारी स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है।

भ्रष्टाचार

सैनिकों की भर्ती से लेकर सामान की आपूर्ति तक हर काम में रिश्वत चली है। 

रिश्वत के लिए अफ़गान नेताओं और सैनिकों ने ठेकेदारों को हालात की सही तसवीर नहीं दिखाई। ठेकेदारों ने अमेरिकी अधिकारियों को और अमेरिकी अधिकारियों ने अमेरिकी सरकार को। एक-दो बार जब गड़बड़ का पता चला तब अमेरिकी सरकार ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए मुखौटा पहन लिया। 

'वॉशिंगटन पोस्ट' के युद्ध संवाददाता क्रेग विटलॉक ने एक क़िताब लिखी है, 'अफ़गानिस्तान पेपर्स'। उसमें उन्होंने लिखित सबूतों के साथ सिद्ध किया है कि राष्ट्रपति बुश, क्लिंटन और ओबामा, तीनों को पता था कि तालिबान की जड़ें नहीं उखड़ी हैं और पाकिस्तान दोहरा खेल खेल रहा है। फिर भी तीनों ने अपनी कामयाबी और जीत के दावे जारी रखे।

ISI, pakistan help taliban win afghanistan - Satya Hindi

अमेरिका की कमज़ोरी

पाकिस्तान और तालिबान को अमेरिका की इस कमज़ोरी का एहसास हो गया था। इसलिए उसने इसका पूरा फ़ायदा उठाया। अस्सी के दशक में अमेरिका और सऊदी अरब की खुली शह पर मुजाहिदीन की फौज खड़ी की और सोवियत संघ को भगा दिया। 

उसके बाद नब्बे के दशक में तालिबान को खड़ा कर अफ़गानिस्तान में अपना एक मोहरा बिठा दिया। 2001 में अमेरिका की धमकी देने के बाद उसे ख़ुश रखने के लिए कुछ सहयोग किया पर अपने मोहरे को बचा कर रखा।

जब अमेरिका की हिम्मत टूटने लगी तो मोहरे को समझौते के लिए आगे करके वाहवाही लूटी और अमरीका के जाते ही उसे अफ़गानिस्तान पर क़ाबिज़ करवा दिया। 

अमेरिका की सबसे बड़ी भूल यह है कि उसने पाकिस्तान और तालिबान के पैसे और हथियारों के स्रोत को बंद नहीं किया। आपको याद होगा तालिबान ने 1996 में आते ही अफ़ीम की खेती को अपने हाथों में ले लिया था ताकि उनके दुश्मनों की आय का स्रोत बंद हो जाए। 

अमेरिका ने यह काम कड़ाई से नहीं किया। वो लातीनी अमेरिकी देशों में तो कोकोआ और अफ़ीम की खेती नष्ट करने के लिए रसायनों की बरसात करने जाते हैं पर अफ़गानिस्तान में नहीं किया। इससे तालिबान और पाकिस्तान के छद्मयुद्ध के लिए पैसा आता रहा।

भारत के लिए भयानक

अमेरिका चाहता तो सऊदी अरब पर शिकंजा कस सकता था। अपना पैसा बंद कर सकता था और अफ़गान सरकार में चल रहे भ्रष्टाचार के सफ़ाए के लिए अपनी प्राइवेट कंपनियों की लगाम कस सकता था। पर ऐसा नहीं हुआ और तालिबान की वापसी आपके सामने है जो पाकिस्तानी सेना की एक बड़ी सामरिक जीत है। 

इस के परिणाम भारत और पूरी दुनिया के लिए इसलिए भयावह हैं क्योंकि जिहादी संगठन इसे पूरी दुनिया पर उनकी विचारधारा की जीत के रूप में देखेंगे। पाकिस्तान और तालिबान के साथ-साथ दुनिया भर में सिर उठा रहे जिहादी आतंकवादियों के हौसले बुलंद होंगे। 

कट्टरपंथी मुल्ला और खुलकर प्रचार करेंगे। तालिबानी जीत को कुछ लोग आज़ादी की जंग में काफ़िर विदेशी महाशक्ति पर तालिबान की जीत के रूप में देखेंगे। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शिवकांत | लंदन से
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें