प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सातवीं अमेरिका यात्रा को लेकर कई तरह की आशंकाएँ और आशाएँ थीं। उनकी यह तीन दिवसीय यात्रा द्विपक्षीय शासकीय यात्रा नहीं थी। इसलिए इस यात्रा से संबन्धों में नया मोड़ लाने वाले किसी बड़े सामरिक या व्यापारिक समझौते की उम्मीद तो नहीं थी। पर अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी और हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का सामना करने के लिए किसी पहल की उम्मीद थी। ख़ासकर चार देशों के नए संगठन क्वॉड जिसकी शिखर बैठक पहली बार हो रही थी।
मोदी की अमेरिका यात्रा से भारत को क्या मिला!
- विश्लेषण
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- 28 Sep, 2021

भारत को क्वॉड में शामिल कर अमेरिका एशिया-प्रशांत क्षेत्र में पाँव पसारते चीन को रोकना चाहता है। पर भारत की पूर्वोत्तरी और पश्चिमोत्तरी सीमाओं पर पाँव पसारने की कोशिश में लगे चीन और अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान और चीन की मदद से सत्ता में लौटे तालिबान के ख़तरे को रोकने के लिए क्वॉड और अमेरिका से कोई मदद मिल सकती है या नहीं?
आशंकाएँ कई बातों को लेकर थीं। दो साल पहले इन्हीं दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान हुई यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने ह्यूस्टन में आयोजित हुई हाउडी मोदी सभा में पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थन के नारे लगाए थे। चुनावों के दौरान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने लोकतांत्रिक मूल्यों, अल्पसंख्यकों की स्थिति और मानवाधिकारों को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की थी। अर्थव्यवस्था की लगातार बिगड़ती दशा और आर्थिक सुधारों के ख़िलाफ़ फैलते विरोध की वजह से भारत के बाज़ार और निवेश का आकर्षण भी फीका पड़ चुका था।