स्कॉटलैंड के शहर ग्लासगो में रविवार से विश्व जलवायु सम्मेलन शुरू हो रहा है। 1995 से हर साल होने वाले इस सम्मेलन को कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ या COP सम्मेलन के नाम से पुकारा जाता है। 26वाँ वार्षिक सम्मेलन होने के कारण इस वर्ष के सम्मेलन का नाम COP26 रखा गया है। ग्लासगो के इस सम्मेलन में उन वायदों को पक्का किया जाएगा जो 2015 के पैरिस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए किए गए थे।
ग्लासगो सम्मेलन: समय रहते नहीं चेते तो ख़त्म हो जायेगी पृथ्वी!
- विचार
- |
- |
- 13 Nov, 2021

ग्रीनहाउस गैसें सूरज की गर्मी को धरती की सतह से परावर्तित होने से रोकती हैं जिससे वायुमंडल गर्म होने लगता है। इसीलिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नेट ज़ीरो पर लाने की कोशिश हो रही है ताकि वायुमंडल के तापमान में हो रही बढ़ोतरी को रोका जा सके।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन के एक अनुमान के अनुसार पिछले साल भर में भारत को बाढ़ और तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से 87 अरब डॉलर और चीन को 238 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। आपदाओं की इसी बढ़ती विभीषिका को देखते हुए ग्लासगो के जलवायु सम्मेलन को मानवमात्र की रक्षा के अंतिम उपाय के रूप में देखा जा रहा है। इसीलिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन समेत विश्व के सौ से अधिक नेता सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहुँच रहे हैं।
लगभग छह लाख की आबादी वाले ग्लासगो शहर में दुनिया भर से 30 हज़ार से अधिक नेता, राजनयिक, ग़ैर सरकारी संस्थाओं के कार्यकर्ता और पर्यावरणवादी जमा हो रहे हैं। धरने और विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए दस हज़ार से ज़्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। शहर में कमरों की ऐसी किल्लत हो गई है कि आने वाले बहुत से लोगों को तंबुओं में रहना पड़ सकता है।