क़ब्रिस्तान में उस लड़के को अभिनय के साथ-साथ जोर जोर से डायलॉग बोलते देख हमउम्र लड़के उसका ख़ूब मज़ाक उड़ाया करते थे। मोहल्ले के बड़ों ने जब उसे कब्रिस्तान के सन्नाटे में जोर-जोर से बोलते सुना तो उसकी माँ को बताया गया कि उनका बेटा पागल हो गया है। अभिनय से जुनून की हद तक प्यार करने वाला यह लड़का क़ब्रिस्तान में इसलिए जाता था कि वहाँ कोई उसका मज़ाक उड़ाने वाला नहीं था। माँ ने बेटे से कहा था कि तुम जो चाहे करो लेकिन पढ़ाई मत छोड़ना। इस लड़के का नाम था कादर ख़ान।
क़ब्रिस्तान में डायलॉग बोलने का हुनर सीखा कादर ख़ान ने
- सिनेमा
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- 1 Jan, 2019
दमदार डायलॉग और अभिनय के सहारे कादर ख़ान ने अस्सी और नब्बे के दशक में फ़िल्मी पर्दे पर धमाल मचा दिया। शराबी, कुली जैसी कई फ़िल्मों में उनके डायलॉग जबरदस्त हिट हुए।

काबुल से मुंबई आया था परिवार
मुंबई के कमाठीपुरा इलाक़े में रहने वाले दस साल के कादर ख़ान को क़ब्रिस्तान में डायलॉग बोलते और अभिनय करते देखने वाले लोगों में से एक शख़्स उन्हें मोहल्ले के एक नाटक ग्रुप में ले गया। यहीं से कादर ख़ान की लेखन और अभिनय की विधिवित ट्रेनिंग शुरू हुई। 1937 में काबुल में पैदा हुए कादर ख़ान का शुरूआती जीवन बेहद ग़रीबी में बीता। ग़रीबी से लड़ने के लिए ही उनका परिवार काबुल से मुंबई आया था लेकिन ग़रीबी दूर नहीं हो सकी।
पॉलिटेक्निक में शिक्षक भी रहे
कादर ख़ान को नाटक ग्रुप के जरिये एक सहारा मिल चुका था। स्कूली किताबों से अलग वहाँ उनका परिचय कहानी, उपन्यास और शायरी से हुआ। अपनी माँ की बात को ध्यान में रखते हुए कादर ख़ान ने बुरे से बुरे आर्थिक दौर में भी स्कूली पढ़ाई जारी रखी। पढ़ाई खत्म करने के बाद वे एक पॉलिटेक्निक में शिक्षक हो गए।
लेकिन नाटकों से उनका रिश्ता दिन-ब-दिन मजबूत होता चला गया। उनका लिखा एक नाटक ‘लोकल ट्रेन’ एक प्रतियोगिता में पुरस्कृत किया गया। इस प्रतियोगिता की ज्यूरी में मशहूर लेखक और फ़िल्मकार राजेंद्र सिंह बेदी, उनके बेटे नरेंद्र बेदी और कामिनी कौशल शामिल थे। नरेंद्र बेदी ने कादर ख़ान की प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें अपने साथ फ़िल्म ‘जवानी दीवानी’ के संवाद लिखने का काम दिया।