loader

जींद में हार के बाद राहुल के फ़ैसले पर उठ रहे सवाल

हरियाणा की जींद विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने कांग्रेस की नींद उड़ा दी है। इस सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने अपने सबसे क़रीबी और भरोसेमंद सिपहसालार रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनाव मैदान में उतारा था। पहले से ही हरियाणा की कैथल विधानसभा सीट से विधायक सुरजेवाला को जींद की जनता ने पूरी तरह नकार दिया। सुरजेवाला 22740 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे। सिर्फ़ 700 वोटों से उनकी ज़मानत बची है। यानी अगर उन्हें 700 वोट कम मिलते तो उनकी जमानत भी ज़ब्त हो जाती। 

कांग्रेस ने बनाया प्रतिष्ठा का सवाल 

जींद उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाने वाली कांग्रेस के लिए इसके नतीजे हैरान करने वाले ही नहीं बल्कि नींद उड़ाने वाले भी हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकारों को उखाड़ देने वाली कांग्रेस ने जींद के उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। यह सीट इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के विधायक डॉ. हरिचंद मिड्ढा के निधन की वजह से खाली हुई थी। 

बीजेपी ने डॉ. मिड्ढा के पुत्र कृष्ण मिड्ढा को अपना उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला को मैदान में उतारा। इनेलो से अलग होकर जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बनाने वाले अजय चौटाला ने अपने पुत्र दिग्विजय सिंह चौटाला को मैदान में उतारा था।

सीट जीतना चाहते थे राहुल

चुनाव के दौरान ही यह माना जा रहा था कि इस सीट पर बीजेपी और जेजेपी के बीच मुख्य मुक़ाबला होगा। लेकिन राहुल गाँधी यह सीट जीतकर साबित करना चाहते थे कि तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद बाक़ी जगहों पर भी कांग्रेस का ग्राफ़ बढ़ा है। लेकिन चुनावी नतीजों ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

राजस्थान की रामगढ़ विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस जीती है। लेकिन जींद में सुरजेवाला की हार रामगढ़ की जीत पर भारी पड़ गई। जीत का कहीं कोई जिक्र नहीं है और हार की हर जगह चर्चा है।
जींद में सुरजेवाला की बुरी तरह हार के बाद पार्टी के ही लोग कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के फ़ैसले पर सवाल उठाने लगे हैं। खुलकर तो कोई नहीं बोल रहा लेकिन दबी जुबान में सब कह रहे हैं कि पहले से ही कैथल से विधायक सुरजेवाला को उपचुनाव लड़ाने का फ़ैसला राजनीतिक रूप से ग़लत था। यही उनके हार की बड़ी वजह भी बनी। जब सुरजेवाला जींद में चुनाव लड़ने गए तो उनके सामने यह सवाल आया था कि अगर वह जींद से भी जीत जाते हैं तो किस सीट से इस्तीफ़ा देंगे।एक जनसभा में सुरजेवाला ने यह कहा था कि वह कैथल से इस्तीफ़ा देंगे और जींद का प्रतिनिधित्व करेंगे लेकिन सुरजेवाला को चुनाव में उतारे जाने का फ़ैसला पार्टी में कई लोगों के गले नहीं उतर रहा था। 
पार्टी के बड़े नेता भी इस पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पा रहे थे कि पहले से ही विधायक को उपचुनाव लड़ाने का क्या तुक है। तभी आशंका थी कि सुरजेवाला, राहुल गाँधी की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाएँगे। जींद के नतीजों ने इस आशंका को सही भी साबित कर दिया।

निजी तौर पर भी हुआ नुक़सान

जींद में हुई बुरी हार से सुरजेवाला को निजी तौर पर भी राजनीतिक नुक़सान हुआ है। पार्टी में लगातार आसमान छूते जा रहे सुरजेवाला का क़द इससे कम हुआ है। ग़ौरतलब है कि सुरजेवाला विधायक होने के बावजूद कांग्रेस की केंद्रीय कार्यसमिति में बड़ी अहमियत रखते हैं। 

राहुल गाँधी ने अचानक उनका क़द बढ़ा दिया था। सुरजेवाला कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य भी हैं और पार्टी के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष भी हैं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुरजेवाला ही हैं। ऐसे में हार से उन पर सवाल उठने लगे हैं। चुनाव परिणाम आते ही हरियाणा सरकार में मंत्री अनिल विज ने राहुल गाँधी पर यह कहकर तंज कसा कि राहुल गाँधी का ‘हीरा’ कोयला साबित हुआ है। सुरजेवाला जिस बेबाकी और आक्रामक तरीके से विपक्ष के हमलों का जवाब देते रहे हैं, इस हार के बाद शायद उनके तेवर इतने तीखे ना रहें।

जींद के चुनावी नतीजे आने के बाद कांग्रेस के जनसंपर्क विभाग में मायूसी देखी गई। सभी मीडिया को-ऑर्डिनेटर्स के चेहरे लटके हुए थे। सभी को इस बात का दु:ख है कि उनके विभाग का अध्यक्ष चुनाव में बुरी तरह हारा है। अब वह किस मुँह से पार्टी का बचाव करेंगे।

सीएम की कुर्सी पर है नज़र

दरअसल, सुरजेवाला की नज़र अर्जुन की आँख की तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर है। पार्टी में उनका क़द बढ़ने के बाद यह माना जा रहा था कि जब भी कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में लौटेगी तो सुरजेवाला निर्विवाद रूप से राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। राहुल गाँधी के कहने पर सुरजेवाला इसीलिए जींद के चुनावी रण में कूद गए थे कि अगर वह अपने नेता की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं तो मुख्यमंत्री बनने की उनकी राह आसान हो जाएगी। लेकिन कहीं ना कहीं यह भी डर था कि अगर वह चुनाव हार जाते हैं इससे उन्हें अपनी मंजिल पाने में मुश्किल होगी। 

साल 2005 में जब कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में आई थी तब मुख्यमंत्री के रूप में सुरजेवाला का नाम चला था। उस चुनाव में सुरजेवाला ने हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे ओम प्रकाश चौटाला को हराया था।

सुरजेवाला ने ओम प्रकाश चौटाला को दो बार उनके मुख्यमंत्री रहते हराया है। जींद में मिली बुरी तरह हार ने फ़िलहाल कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बनने के सुरजेवाला के दावे को थोड़ा कमज़ोर कर दिया है।

क्या अंदरूनी राजनीति का बने शिकार?

पार्टी में यह भी चर्चा है कि सुरजेवाला कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हो गए हैं। पार्टी में लगातार उनका आसमान छूता क़द पार्टी के पुराने और दिग्गज नेताओं को रास नहीं आ रहा था। वे फिराक में थे कि कैसे उनके क़द को  और बढ़ने से रोका जाए। लिहाजा उन्होंने राहुल गाँधी के कान भर कर सुरजेवाला को उपचुनाव के मैदान में उतरवा दिया। 

Congress Randeep Singh Surjewala lost Jind bypoll haryana - Satya Hindi
जींद में चुनाव प्रचार के दौरान रणदीप सिंह सुरजेवाला
पार्टी के तमाम नेता जानते थे कि जींद में कांग्रेस के जीतने की संभावना ना के बराबर है। हरियाणा के सभी दिग्गज नेता इस सीट पर ख़ुद चुनाव लड़ने या अपने किसी ख़ास को चुनाव लड़ाने से इनकार कर चुके थे। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर, नेता प्रतिपक्ष किरण चौधरी और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा शामिल थे। यह भी कहा जा रहा है कि इन सब ने मिलकर सुरजेवाला को मोहरा बनाया है।

प्रदेश अध्यक्ष को बदलने की माँग

पर्चा भरने वाले दिन ही बीजेपी सरकार में मंत्री रामविलास शर्मा ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा से सरेआम कहा था कि उन्होंने अपनी राह का काँटा निकाल दिया है। चुनाव में हार के बाद सुरजेवाला को उनके पद से हटाने की माँग भी हो सकती है। इसके अलावा हरियाणा के कुछ कांग्रेसी विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर के ख़िलाफ़ चुनाव नतीजे आने से पहले ही मोर्चा खोल दिया था। इन विधायकों ने हाल ही में हरियाणा के प्रभारी बनाए गए कांग्रेस महासचिव गु़लाम नबी आज़ाद से मिलकर प्रदेश अध्यक्ष बदलने की माँग यह कहते हुए की थी कि तंवर जींद के उपचुनाव में पार्टी को एकजुट रखने में नाकाम रहे हैं।

राहुल के कहने पर लड़े चुनाव 

पार्टी में जहाँ एक तबक़ा इस हार का ठीकरा सुरजेवाला पर  फोड़ना चाहता है, वहींं सुरजेवाला इस नतीजे के लिए कहीं से भी ख़ुद को ज़िम्मेदार नहीं मानते। बताया जाता है कि सुरजेवाला यह चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। राहुल गाँधी के कहने पर ही वह चुनाव मैदान में कूदे। नतीजे की उन्हें परवाह नहीं थी। वैसे भी यह माना जा रहा है कि इस नतीजे के लिए राहुल गाँधी ही जिम्मेदार हैं। क्योंकि उन्होंने ही इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया था। 

राहुल गाँधी ख़ुद इस चुनाव पर नज़र रखे हुए थे। उनके कहने पर ही पार्टी से अलग हो चुके पूर्व सांसद जयप्रकाश को वापस पार्टी में लाकर रणदीप के समर्थन में उतारा गया। लेकिन यह सिक्का भी काम नहीं आया। 

राहुल ने जींद उपचुनाव को जीतने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी थी। उसके बाद भी रणदीप का तीसरे नंबर पर खिसक जाना उनके राजनीतिक फ़ैसले लेने की क्षमता पर सवालिया निशान लगाता है। बीजेपी इसे भी मुद्दा बना रही है।
Congress Randeep Singh Surjewala lost Jind bypoll haryana - Satya Hindi
जींद में चुनाव प्रचार के दौरान दिग्विजय सिंह चौटाला

जेजेपी के प्रदर्शन से बढ़ी चिंता 

कांग्रेस के तमाम नेता अब इस बात को कह रहे हैं कि जब लोकसभा चुनाव सिर पर हों, ऐसे में किसी राज्य की एक विधानसभा सीट के उपचुनाव को इस तरह प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना चाहिए था। जींद में बुरी तरह हार का असर हरियाणा में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। कांग्रेस के नेता दबी जुबान से यह भी मानते हैं कि इतनी ताक़त से चुनाव लड़ने के बावजूद तीसरे नंबर पर आकर कांग्रेस ने नई नवेली जेजेपी के लिए पूरा मैदान छोड़ दिया है।

दिग्विजय के साथ आ सकते हैं जाट

इस उपचुनाव में जेजेपी के दिग्विजय चौटाला एक बड़े जाट नेता के रूप में उभरे हैं। आने वाले दिनों में राज्य के जाट उनके पीछे लामबंद हो सकते हैं। कांग्रेसी इसे अपनी पार्टी के बड़े जाट नेताओं मसलन भूपेंद्र सिंह हुड्डा और रणदीप सुरजेवाला के लिए भी खतरे की घंटी मानते हैं। कांग्रेस के नेताओं को आशंका है कि कहीं विधानसभा चुनाव में बीजेपी और नई नवेली जेजेपी के बीच ही गठबंधन ना हो जाए।

कांग्रेस नेताओं को यह भी आशंका है कि अगले विधानसभा चुनाव में कहीं कांग्रेस हरियाणा में सत्ता की लड़ाई से ही बाहर ना हो जाए। चर्चा यह भी है कि हरियाणा के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ हो सकते हैं। इस तरह की चर्चाओं से कांग्रेस नेताओं की धड़कन बढ़ गई है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

हरियाणा से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें