नागरिकता क़ानून भले ही 2019 में आया हो और इसे धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला बताया जा रहा हो, लेकिन लगता है कि इस भेदभाव वाले क़ानून को लेकर प्रक्रिया की शुरुआत 2014 में ही हो गई थी। ऐसे सरकारी आदेशों का खुलासा हुआ है जिसमें सरकार भारत की नागरिकता लेने के इच्छुक मुसलमानों की राह में दिसंबर 2014 से ही रोड़े अटकाती आई है। तब से ऐसे कई आदेश आए हैं। हालाँकि, इस बारे में रिपोर्टें तब इस तरह से चर्चा में नहीं रहीं या आम लोगों तक ये जानकारियाँ नहीं पहुँच पाईं। लेकिन अब जब 2019 में नागरिकता क़ानून आया और इस पर हंगामा हुआ तो इस बारे में परतें खुलने लगी हैं।