loader

दंगे पर 13 आयोगों की रिपोर्ट में क्या छुपा रही मोदी सरकार!

गृह मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग को बताया है कि 1961 के बाद देश में हुए 13 सांप्रदायिक दंगों की जाँच करने वाले आयोगों की रिपोर्ट उसके पास नहीं है। इस पर आयोग ने गृह सचिव को एक अधिकारी तैनात करके इन सभी रिपोर्ट्स का स्टेटस पता लगाकर पंद्रह दिनों के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। सतर्क नागरिक संगठन की संस्थापक और आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज की याचिका पर सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने गृह मंत्रालय को गत 27 दिसंबर को यह निर्देश दिए हैं।

अंजलि भारद्वाज ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पिछले साल 19 जुलाई 2017 को सांप्रदायिक दंगों की जाँच करने वाले 13 आयोगों की मूल रिपोर्ट की प्रति माँगी थी। दरअसल, सांप्रदायिक दंगों की जाँच के लिए गठित किए विभिन्न न्यायिक और जाँच आयोगों की रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए गृह मंत्रालय ने 2006 में राष्ट्रीय एकता परिषद का एक कार्य समूह गठित किया था। इस समूह को 29 मामलों यानी आयोगों की जाँच का ज़िम्मा सौंपा गया था। समूह ने 2007 में ही अपने रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी थी। अंजलि का कहना है कि गृह मंत्रालय ने 1961 से 2003 के बीच हुए दंगों से जुड़ी इन 29 में से 16 आयोगों की रिपोर्ट तो अपनी वेबसाइट पर डाली है, लेकिन 13 आयोगों की रिपोर्ट नहीं है। जब उन्होंने आरटीआई के जरिये इनकी कॉपी माँगी तो गृह मंत्रालय ने यह कर कॉपी देने से इनकार कर दिया कि उसके पास इन आयोगों की रिपोर्ट मौजूद नहीं है।

अंजलि ने गृह मंत्रालय को केंद्रीय सूचना आयोग में घसीटा तो वहाँ भी गृह मंत्रालय ने यही टका-सा जवाब दे दिया कि माँगी गई 13 आयोगों की रिपोर्ट उसके पास नहीं है। गृह मंत्रालय के इस रवैये से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आख़िर इन 13 आयोगों की रिपोर्ट के बहाने मोदी सरकार देश से क्या छुपा रही है? गृह मंत्रालय के अधिकारी झूठ बोल रहे हैं। जानबूझकर रिपोर्ट नहीं दे रहे। यह बात इससे साबित होती है कि जब 2006 में राष्ट्रीय एकता परिषद ने इन 29 आयोगों की रिपोर्ट की जांच के लिए कार्य समूह गठित किया तो सभी आयोगों की रिपोर्ट उसे सौंपा गई होंगी। कार्य समूह ने जब मंत्रालय को अपन रिपोर्ट दी होगी तो सभी आयोगों की रिपोर्ट भी दी होगी। जब मंत्रालय ने 16 आयोगों की रिपोर्ट वेबसाइट पर डालकर सार्वजनिक की है तो फिर इन 13 आयोगों की रिपोर्ट क्यों सार्वजनिक नहीं की गई? यह एक गंभीर सवाल है। 

अब एक नज़र डालते हैं कि कुछ प्रमुख जाँच आयोगों की रिपोर्ट पर।

जस्टिस पीएस मावलंकर आयोग

  • 1986 में महाराष्ट्र के बीड ज़िले के उमापुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जाँच के लिए गठित।

आयोग की रिपोर्ट

आयोग ने इस हिंसा पर विस्तृत रिपोर्ट दी है। उसके मुताबिक़ 1986 में बाबरी मसजिद का ताला खुलने की वजह से मुसलमानों में रोष था। हिंदू संगठनों ने 13 अप्रैल को मुसलिम इलाक़ों से विजय जुलूस निकाला। इसमें “जिसको चाहिए पाकिस्तान, उसको भेजो कब्रिस्तान” जैसे भड़काऊ नारे लगाए। इसके बावजूद मुसलमानों ने शांति बनाए रखी। 10 मई को शिव सैनिकों ने अब्दुल हमीद चौक पर गणेश की मूर्ति पर माल्यार्पण किया और बाद में एक दूध बेच रहे मुस्लिम से पैसे मांगे। उसके मना करने पर उस पर हमला किया गया। इसके बाद दोनों समुदायों के बीच जमकर पथराव हुआ। 16 मई तक ऐसी कई घटनाएँ हुईं। आयोग ने तीन सिफारिशें की हैं।

श्री आर.एच. हीरामन सिंह आयोग

  • अक्टूबर 1990 में आंध्र प्रदेश के हैदराबाद और रंगारेड्डी जिले में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जाँच के लिए गठित।

आयोग की रिपोर्ट

अक्टूबर से दिसंबर तक चली इस हिंसा पर आयोग ने विस्तार से प्रकाश डाला है। कई कारण गिनाए हैं। इस हिंसा में हिंदू और मुसलिम दोनों समुदायों को जान-माल का भारी नुक़सान हुआ। पहले एक हिस्ट्रीशीटर के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने को लेकर दोनों समुदायों के बीच हिंसा हुई। बाद में बाबरी मसजिद-राम जन्मभूमि विवाद के चलते हिंसा भड़की। रथयात्रा लेकर निकले बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की बिहार में गिरफ़्तारी के बाद कुछ मुसलिम संगठनों ने जेहाद करने संबंधी पम्फलेट बांटें। स्थानीय मीडिया ने इसे बढ़ा-चढ़ा कर छापा। इससे हिंसा भड़की। आयोग ने दस सिफ़ारिशें की थीं।

जस्टिस पी.आर. गोकुलकृष्ण आयोग 

  • फ़रवरी 1998 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच के लिए गठित।

आयोग की रिपोर्ट

14 फरवरी को कोएंबटूर में एक बम धमाके के बाद भड़की हिंसा मे 50 लोग मारे गए थे। यह घटना क़रीब एक दशक से कट्टरपंथी संगठनों हिंदू मुन्नानी और अल उम्मा के बीच लगातार चली आ रही हिंसक झड़पों के सिससिले की कड़ी थी। इससे पहले दोनों संगठन एक-दूसरे के कई सदस्यों की हत्या कर चुके थे। आयोग ने इस मामले में 12 सिफ़ारिशें की थीं।

ऐसे दस अन्य सांप्रदायिक दंगों की जाँच करने वाले आयोगों की रिपोर्ट देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

रिपोर्टों में इन सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के लिए पाँच मुख्य कारण बताए गए हैं।

  • धार्मिकः एक-दूसरे के धार्मिक मामलों में दखलंदाज़ी करके हिंसा के लिए उकसाना।
  • व्यक्तिगतः एक समुदाय की लड़की या महिला के साथ दूसरे समुदाय के लोगों की छेड़छाड़ या बलात्कार। दो समुदायों के लोगों के बीच किसी भी कारण से विवाद।
  • प्रतिक्रियाः देश के बाहर घटी किसी घटना पर मुसलिम समुदाय के लोगों की प्रतिक्रिया सांप्रदायिक तनाव को जन्म देती है।
  • धार्मिक कर्मकांडः धर्मिक जुलूस और उनके मार्ग को लेकर दोनों समुदायों के बीच तनाव का अक्सर हिंसा में बदल जाना।
  • सामान्यः
मुसलमानों में अविश्वास की भावना। रोज़गार, बैंको से कर्ज़ लेने जैसे मामलों में मुसलमानों के साथ बरते जाने वाले भेदभाव की वजह से यह अविश्वास पैदा हुआ है। 
हिंदू संगठनों के उत्तर प्रदेश के अयोध्या, काशी और मथुरा, मध्य प्रदेश के धार में भोजशाला और कर्नाटक की दत्ता पीठ को लेकर चलाए गए आंदोलनों से मुसलमानों में अविश्वास की भावना बढ़ी है।

रिपोर्ट में छुपाने जैसी बात भी है क्या?

कार्य समूह की पूरी रिपोर्ट पढ़ने पर इसमें कुछ भी छुपाने जैसा नहीं लगता। अहम सवाल यह है कि जब कार्यसमूह की पूरी रिपोर्ट गृह मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर डाल रखी है तो फिर 13 आयोगों की मूल रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने से वो क्यों बच रहा है? क्या गृह मंत्रालय से ये तमाम रिपोर्ट ग़ायब हो गईं हैं?
  • अंजलि भारद्वाज को इन आयोगों का रिपोर्ट क्यों चाहिए? इस सवाल का सीधा जवाब देने के बजाय वह कहती हैं कि जनता को सूचना के अधिकार यह रिपोर्ट माँगने का अधिकार है। सरकार को बताना चाहिए कि इन पर क्या कार्रवाई हुई है। अगर सरकार ये रिपोर्ट छुपा रही है तो निश्चित तौर पर उसके पीछे राजनीतिक कारण हैं। क्या कारण हैं, यह साफ़ है और सब जानते हैं।

रिपोर्ट मिलेगी या फिर कोई नया बहाना?

दरअसल, अंजलि ने पिछले साल 19 जुलाई 2017 को सूचना के अधिकार के तहत गृह मंत्रालय से 13 आयोगों की मूल रिपोर्ट की प्रति माँगी थी। मंत्रालय ने 23 अगस्त को जानकारी देने से इनकार कर दिया। अंजलि ने केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की। 22 दिसबंर को सूचना आयुक्त बिमल जुल्का ने इस मामले की सुनवाई की। 27 दिसंबर को उन्होंने फ़ैसला सुनाते हुए गृह मंत्रालय को दे हफ़्ते में ये सारी रिपोर्टें तलाश करके आयोग और अंजलि को देने की हिदायत दे दी है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि गृह मंत्रालय यह रिपोर्ट ढूंढ पाएगा है या फिर कोई नया बहाना बनाएगा।

(ये सारी जानकारियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के कार्यसमूह की रिपोर्ट से ली गई है।)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें