सरकार के लिए अब सही मायनों में हिम्मत दिखाने का वक़्त आ गया है क्योंकि जीडीपी के ताज़ा आँकड़े बुरी तरह डरा रहे हैं। कहा जाता है कि डर के आगे जीत है। लेकिन उस जीत तक पहुँचने के लिए ही हिम्मत की ज़रूरत होती है। 40 साल में पहली बार भारत मंदी की चपेट में जा रहा है।

साफ़ है कि संकट गहरा है। अर्थव्यवस्था पहले ही मुसीबत में थी और कोरोना ने उसे पूरी तरह बिठा दिया है। सरकार क्या करेगी यह तो आगे दिखेगा, लेकिन इतना साफ़ दिखने लगा है कि अभी तक जितने भी राहत या स्टिमुलस पैकेज आए हैं, उनका कोई बड़ा फ़ायदा नज़र नहीं आ रहा है।
अप्रैल से जून के बीच भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ने की जगह क़रीब 24 प्रतिशत कम हो गई है। आशंका है कि अगली तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच की ख़बर जब आम होगी तब भी यह गिरावट बढ़त में नहीं बदल पाएगी। यानी 40 साल में पहली बार भारत आर्थिक मंदी की चपेट में जा चुका होगा। वह भी ऐसे समय पर जब भारत 'विश्वगुरु बनने की तैयारी' कर रहा था।
आज़ाद भारत के इतिहास में अर्थव्यवस्था इतने ख़राब हाल में कभी नहीं आई। हालाँकि, इससे पहले भी सुस्ती या स्लोडाउन के झटके आए हैं लेकिन इस बार की बात एकदम अलग है।