औपनिवेशिक भारत का बीसवीं सदी का दूसरा दशक सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक और अस्मितावादी सरगर्मी  से भरा रहा है। साल 1920-21 में जहाँ असहयोग आन्दोलन ने अंग्रेजों में खलबली मचा रखी थी, वहीं बाबा रामचन्द्र और मदारी पासी के किसान आंदोलन ने जमींदारों के होश उड़ा रखे थे। इसी दशक में साहित्यिक क्षेत्र में  'चाँद', 'माधुरी', 'सुधा', 'विशाल भारत', 'मनोरमा', 'त्यागभूमि' आदि स्वाधीनतावादी चेतना से लैस पत्रिकाओं का उदय हुआ था।