औपनिवेशिक भारत का बीसवीं सदी का दूसरा दशक सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक और अस्मितावादी सरगर्मी से भरा रहा है। साल 1920-21 में जहाँ असहयोग आन्दोलन ने अंग्रेजों में खलबली मचा रखी थी, वहीं बाबा रामचन्द्र और मदारी पासी के किसान आंदोलन ने जमींदारों के होश उड़ा रखे थे। इसी दशक में साहित्यिक क्षेत्र में 'चाँद', 'माधुरी', 'सुधा', 'विशाल भारत', 'मनोरमा', 'त्यागभूमि' आदि स्वाधीनतावादी चेतना से लैस पत्रिकाओं का उदय हुआ था।
'मदर इंडिया' : किताब जिसने 1920 में भारतीय समाज को हिला दिया था!
- साहित्य
- |
- |
- 23 Aug, 2021

मेयो कैथरीन की किताब मदर इंडिया ने स्त्रियों की दशा का जो चित्रण किया, उससे भारतीय समाज अंदर से हिल गया और कैथरीन की आलोचना होने लगी।
साल 1920 में ही उत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द के अस्मितावादी दलित आंदोलन का उदय हुआ जिसने बहुजनों को गोलबंद करके सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए चेतना पैदा कर दी थी।
1920 में स्वराज की मांग ने ब्रिटिश शासकों के भीतर खलबली मचा दी थी, वहीं 1921 की जनगणना के आकड़ों ने हिन्दू सुधारकों और लेखकों को चिंता में डाल दिया था।
1920 में स्वराज की मांग ने ब्रिटिश शासकों के भीतर खलबली मचा दी थी, वहीं 1921 की जनगणना के आकड़ों ने हिन्दू सुधारकों और लेखकों को चिंता में डाल दिया था।
साल 1911 से लेकर 1921 तक की जनगणना में साढ़े आठ लाख हिंदू घट गये थे। हिन्दुओं की घटती संख्या पर हिंदी नवजागरणकाल के संपादक और लेखक चिंतित हो गए थे। हिंदुओं के सामाजिक बंधनों और भेदभाव से तंग आकार अछूत अपनी मुक्ति धर्मांतरण में तलाशने लगे थे।
1927 में साइमन कमीशन के आगमन की आहट ने जहां हिन्दू सुधारकों की चिंताएँ बढ़ा दी थी, वहीं दलित समाज के सुधारकों ने अछूतों को हिन्दू धर्म के दायरे से बाहर निकालने की क़वायद शुरू कर दी थी।
1927 में साइमन कमीशन के आगमन की आहट ने जहां हिन्दू सुधारकों की चिंताएँ बढ़ा दी थी, वहीं दलित समाज के सुधारकों ने अछूतों को हिन्दू धर्म के दायरे से बाहर निकालने की क़वायद शुरू कर दी थी।