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भूले नहीं हैं, अपमान भूलेंगे भी नहीं, जवाब देंगे: राउत 

सुशांत सिंह राजपूत और बाद में कंगना रनौत के मामले में मीडिया ने शिवसेना और उनकी सरकार को जमकर घेरा। ख़ासतौर पर रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी ने उद्धव ठाकरे को लेकर जिस भाषा का इस्तेमाल किया वो किसी भी नेता के लिए असहनीय हो सकता है। उसके बाद कंगना ने ठाकरे को लेकर तू-तड़ाक किया। अब रिपब्लिक टीवी का नाम टीआरपी घोटाले में आने के बाद यह कहा जा रहा है कि शिवसेना हिसाब चुकता कर रही है। क्या वाक़ई में? आशुतोष ने संजय राउत से बात की। 
आशुतोष

आशुतोष - संजय राउत जी आप इतना विवादों में क्यों रहते हैं? 

संजय राउत - विवादों में नहीं रहता हूँ। बाला साहेब के साथ तीस सालों से काम किया है, बहुत नज़दीक से। तो थोड़ा विवादों से रिश्ता तो रहेगा। लेकिन विवाद जानबूझकर तो नहीं खड़ा करता। जैसे आपने कहा अभी सच बताना बहुत मुश्किल है, तो जब मैं सच बताता हूँ, मेरी पार्टी की तरफ़ से या ठाकरे परिवार की तरफ़ से तो लोगों को सुनना बहुत मुश्किल होता है। सच जो होता है न तो उसको नकार नहीं सकते हैं न। 

आशुतोष - शिवसेना में तो और भी बड़े नेता हैं। विवाद आपके ही पीछे क्यों पड़ा रहता है?  

संजय- सत्य है, मेरे और भी साथी हैं। लेकिन मैं सामना का संपादक भी हूँ। सामना जिसे आप मुखपत्र कहते हैं, मैं उसे न्यूज़पेपर कहता हूँ, उद्धव ठाकरे हों, मैं हूँ, हम सब मिलकर सामना चलाते हैं। और सामना एक पापुलर अख़बार भी है। सामना में जो कुछ भी लिखता हूँ तो लोग उसे पार्टी की भूमिका मानते हैं। तो लोग उसकी वजह से विवाद करते हैं। मैं, मेरी भूमिका, मेरी पार्टी की भूमिका, मेरी स्टाइल है जिसे यहाँ ठाकरी भाषा बोलते हैं। उस स्टाइल से मैं बोलता हूँ, लिखता हूँ तो लोगों को तकलीफ़ होने की ज़रूरत नहीं है। मेरी किसी से राजनीति में कोई दुश्मनी नहीं है। न मोदी साहब से, न अमित साहब से है, न देवेंद्र फडनवीस साहब से है, न कंगना रनौत से है, न सुशांत सिंह राजपूत से है। जो बात सच है, मैं ज़ोर से बोलूँगा और बोलता रहूँगा। न सत्ता में हूँ और न सत्ता में जाने की कोशिश करता हूँ। मेरे लिये जो बैठा हूँ (संपादक - सामना) मेरे लिये सबसे बड़ा पद है। 

टीआरपी घोटाला विवाद

आशुतोष - आपने कहा कि ठाकरी भाषा है। ये ठाकरी भाषा क्या है? उसमें एंग्रेशन बहुत होता है, कुछ लोग कहते हैं उसमें गाली गलौच भी बहुत होती है। 

संजय - नहीं नहीं। गाली गलौच नहीं। बाला साहेब ने कभी किसी को गाली नहीं दी। 

आशुतोष - मैं आपके आलोचकों की बात कर रहा हूँ।

संजय - राजनीति में आलोचक तो होने चाहिये। राजनीति में अगर आलोचक नहीं होंगे तो राजनीति बहुत फीकी हो जायेगी। मराठी में एक बड़े संत थे, संत तुकाराम वो कहते थे, जो आपकी निंदा करता है आप उसके क़रीब रहिये। 

आशुतोष - आप इतने निंदक पास में रखते हैं?  

संजय - बाला साहेब ठाकरे ने सिखाया है कि ज़्यादा से ज़्यादा निंदक आप साथ रखिये। 

आशुतोष- संजय जी ये जो हाल में टीआरपी का विवाद आया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी का नाम आया है। लोग ये कहते हैं कि बदले की कार्रवाई है। जो महाराष्ट्र की सरकार ने की है? क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत के मामले में उस टीवी ने बहुत आक्रामकता के साथ आपकी सरकार की आलोचना की है? 

संजय - कोई आक्रामक नहीं। सब झूठा। आपने देखा होगा। हमने तो उस वक़्त कोई बात नहीं की। अब सीबीआई हो, एम्स हो, अब ये लोगों ने सच बताया है। एम्स के फ़ोरेंसिक के जो चीफ़ है वो तो शिवसेना के नहीं हैं। वो तो महाराष्ट्र स्टेट के नहीं हैं। वो तो इंडिपेंडेंट बॉडी है। सच तो उसने बताया है। अब तो सीबीआई दो महीने से कर रही है न मुंबई पुलिस के ऊपर। अब सुराग तो मिलने चाहिये, न ये आत्महत्या या है या हत्या है? किसने किया है? मुंबई पुलिस ने जो जाँच की है, उसके आगे एक भी पेज वो आगे नहीं बढ़ पाये हैं। तो ख़ाली फोकट हम सब को, महाराष्ट्र को, पुलिस को बदनाम करना, हमारा नाम लेकर - हे उद्धव ठाकरे, हे शरद पवार, हे अनिल देशमुख, हे संजय राउत, ये भाषा पत्रकारिता की नहीं है! पत्रकारिता हम भी बहुत सालों से करते हैं, आप लोग भी कर रहे हैं, सब तरह के चैनल मैं भी देखता हूँ। इस तरह की भाषा का इस्तेमाल अब तक इस देश की पत्रकारिता में नहीं हुआ है। ये बहुत बड़ी गंदगी है। अगर राजनेता ग़लती करता है तो ये पत्रकार का, जो चौथा स्तंभ है, उसकी ज़िम्मेदारी है कि वो हमको सुधारे। आप इसलिये बैठे हैं झाड़ू लेकर। लेकिन आप नहीं करते। आप तो राजनेताओं से भी ज़्यादा अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हो, इसको मैं जर्नलिज़्म नहीं मानता हूँ। मेरी पूरी ज़िंदगी जर्नलिस्म में गई है। मैं पैदा ही जर्नलिज़्म में हुआ हूँ। मैं तीस साल से जर्नलिज़्म में हूँ। एक अख़बार का एडिटर भी हूँ, चाहे आप कुछ भी कहें। मुझे मालूम है किस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिये और किस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। आज एक मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री एक इंस्टीट्यूशन होता है। उद्धव ठाकरे एक मुख्य मंत्री हैं। वो एक संस्था हैं, अब उनके ऊपर एक बहुत ही घृणास्पद भाषा का इस्तेमाल करो। शरद पवार साहब के ख़िलाफ़ आप जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल करो। राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं। क्या ये जर्नलिज़्म में आप ठीक मानते हो? मैं नहीं मानता हूँ। आप स्वतंत्र हैं। उनके ऊपर टीका-टिप्पणी करने को, उनकी आलोचना करने को। अगर कुछ ग़लती की है तो उजागर करने का। लेकिन ये भाषा भी ठीक नहीं है। और ये तरीक़ा भी नहीं है जर्नलिज़्म का। 

आशुतोष - तो संजय जी यह माना जाए कि अब उनको सबक सिखाने की कोशिश है? 

संजय - नहीं। नहीं। हम क्यों? देखिये हमारा सबक़ सिखाने का तरीक़ा अलग होता है। ये तो क़ानूनी कार्रवाई है। अगर सबक़ सिखाना है तो शिवसेना को कितना टाइम लगता है। पाँच मिनट। लेकिन संयम बहुत बड़ी बात होती है। हमारी सरकार है, हमारा मुख्यमंत्री है, तीन पार्टियों की सरकार है। जब हम अपोज़िशन में थे तो अलग बात थी। जब हम सत्ता में हैं तो बहुत संयम से बात होती है। धीरज से काम करना पड़ता है ये हमें मालूम है। 

आशुतोष - शिवसेना का जो तरीक़ा है, जो आपने कहा कि पाँच मिनट में सबक़ सिखा देते हैं, अब आप एडमिनिस्ट्रेशन में हैं तो संयम से काम लेते हैं तो आपने दूसरा रास्ता तय कर लिया है। अब चूँकि आपके पास प्रशासन है, सरकार है, पुलिस है तो आपने तय किया कि दूसरे रास्ते से तय करते हैं न। उन्होंने कहा - हे उद्धव ठाकरे, हे शरद पवार, तो आपने तय किया कि दूसरे रास्ते से सबक़ सिखाते हैं न? 

संजय - नहीं नहीं,  जो कुछ हो रहा है वो क़ानून के दायरे में हो रहा है। हमने नहीं कहा किसी को ये करिये ये मत करिये। मुंबई के पुलिस कमिश्नर हैं, परमबीर सिंह। आप उनका रिकॉर्ड देखिये। बहुत समय से सर्विस में हैं, कभी भी ग़लत काम इस आदमी ने नहीं किया है। आईपीएस हैं। उनको मालूम है कि क्या करना है क्या नहीं करना है। अगर उसने कोई भांडाफोड़ किया है तो आप यह क्यों मान लेते हैं कि उसमें सरकार का रोल है, पार्टी का रोल है। जो होता है वो होने दो। अब अगर किसी को हमारे ऊपर भौंकना है तो भौंकने दो।

आशुतोष - क्या आपको लगता है कि अर्णब गोस्वामी को गिरफ़्तार करना चाहिये? 

संजय - मैं ऐसा नहीं बोलूँगा। यह क़ानून का मामला है। मैं ऐसे शब्द का इस्तेमाल नहीं करूँगा। अगर क़ानून  को लगता है, कमिश्नर को लगता है, पुलिस को लगता है, क़ानून की ज़रूरत हो तो क़ानून काम करेगा। मैं उसमें मत नहीं दे सकता।

देखिए संजय राउत का पूरा इंटरव्यू

आशुतोष - मैं ये सवाल इसलिये पूछ रहा हूँ कि इस मामले में तीन चैनल का नाम आया। दो छोटे चैनल के मालिक गिरफ़्तार हुये, एक बड़े चैनल के मालिक, संपादक को सम्मन भेजा जा रहा है, तो ऐसा लग रहा है कि दोहरा रवैया है, आप लोगों के मन में डर है कि इनके ऊपर हाथ नहीं डालना चाहिये, जो कमज़ोर थे उनको अंदर कर दिया।

संजय - इस सवाल का जवाब मैं नहीं दे सकता। यह सवाल आपको मुंबई पुलिस कमिश्नर से पूछना चाहिये। कार्रवाई परमवीर सिंह ने शुरू की है, हमने नहीं शुरू की है। मुझे तो पता भी नहीं चला कि क्या हो रहा है। जब कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो पता चला। तो ये सवाल कि गिरफ़्तार करना चाहिये या नहीं ये सवाल सीधे पुलिस कमिश्नर से पूछना चाहिये। होम मिनिस्टर से पूछना चाहिये। मैं नहीं दे सकता।

आशुतोष - लेकिन सरकार तो आप चला रहे हैं? लोग तो यही कहेंगे कि ये आपके इशारे पर हो रहा है क्योंकि पिछले दिनों आपके ख़िलाफ़ काम किया गया, आपको धमकियाँ दी गईं, चुनौती दी गई। इसलिये आपकी बात को कौन मानेगा कि पुलिस कमिश्नर इतना बड़ा काम कर रहे थे और सरकार को मालूम नहीं था?

संजय - देखिये बात रही धमकी की तो कोई धमकी नहीं दे सकता है, इस प्रकार से। टीवी स्क्रीन पर बैठ कर बड़ी-बड़ी बात आप कर सकते हो, ठीक है। लेकिन आपके आसपास जो सिक्योरिटी है, वो मुंबई पुलिस की है, आपके दफ़्तर के बाहर की जो सिक्योरिटी है वो मुंबई पुलिस की है। अगर आपको विश्वास नहीं है, हम विनडिक्टिव हैं तो निकाल दो सिक्योरिटी। प्राइवेट गार्ड लगा दो। लेकिन हमने ये नहीं कहा। ये हमारी, सरकार की ज़िम्मेदारी है। कोई भी व्यक्ति हो, वो चाहे हमारे ख़िलाफ़ ही काम कर रहा हो उसको सुरक्षा देना हमारी ज़िम्मेदारी है। अब वो कंगना रनौत, वो जो एक्ट्रेस है, अब वो बड़ी-बड़ी बात करके आ गयी, सेंटर ने सिक्योरिटी दी, फिर भी हमारी पुलिस ने उनकी पूरी हिफ़ाज़त की। एयरपोर्ट से लेकर घर तक और जब तक मुंबई में थी, तब तक हमारी मुंबई पुलिस उनके साथ थी। उस लड़की ने भी मुंबई पुलिस को माफिया बोला लेकिन मुंबई पुलिस अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं भागी। ये हमारी ज़िम्मेदारी है, सरकार की ज़िम्मेदारी है। हमारे विरोधी हमारे ख़िलाफ़ बोलें ये उनका अधिकार है। उनको सुरक्षा देना हमारा काम है।  

आशुतोष - संजय जी आपको अफ़सोस है कि आपने कंगना के लिये हरामखोर शब्द का इस्तेमाल किया था?

संजय - नहीं। हमें अफ़सोस नहीं है। हरामखोर का महाराष्ट्र में अर्थ होता है बेईमान। कोई भी मुंबई में रहता हो, मैं किसी का नाम नहीं लूँगा, कोई भी व्यक्ति मुंबई में रहता है, बिहार में रहता है, कोलकाता में रहता है, उस शहर में आप रहते हो, बड़े होते हो, बहुत बड़े हो जाते हो, शिखर पर पहुँच जाते हो, बाद में आप उस शहर को पाकिस्तान कहते हो, किसी भी उस शहर के प्रमुख व्यक्ति को बुरा लगेगा। अगर मैं जाकर पटना में बैठा, दस साल से बहुत बड़ा बिज़नेस किया, कमाने लगा और फिर बोला कि पटना तो पाकिस्तान है, लखनऊ तो पाकिस्तान है तो क्या वहाँ के लोग मुझे छोड़ेंगे? मेरा भी एक कर्तव्य बनता है उस शहर के बारे में। ये तो बेईमानी हो गया। मैं दिल्ली में जाकर मेंबर ऑफ़ पार्लियामेंट के नाते, दिल्ली से मुझे बहुत प्यार है, बीस साल से दिल्ली में रहता हूँ। बहुत कुछ दिया है। बहुत लगाव हो गया है। अगर कोई दिल्ली के बारे में कुछ कहता है तो मैं बोलूँगा कि दिल्ली के बारे में मत बोलिये। दिल्ली अच्छा शहर है। सबकी ज़िम्मेदारी है। आप बोल सकते हैं कि ये ग़लत हैं, वो ग़लत हैं, ये आपका अधिकार है लेकिन आप ये बोलो कि ये पाकिस्तान है, माफ़िया है तो आप क्यों रहते हो भाई। तो मैंने यही कहा कि अगर आपको सरकार पर विश्वास नहीं है, पुलिस पर विश्वास नहीं है तो आप यहाँ क्यों रहते हो भाई। ये बेईमानी है। मराठी में उसके हरामखोर बोलते हैं।

आशुतोष - ये इतना आसान मामला तो है नहीं। जानबूझकर ये शब्द निकाले थे या ज़बान फिसल गयी थी? 

संजय - हो सकता है ग़ुस्से में निकाला होगा लेकिन मैं पीछे नहीं हटा हूँ। ग़ुस्सा आता है। ग़ुस्सा किसको नहीं आता है। जो सच्चा होता है उसको ग़ुस्सा आता है। जो राज्य, देश, शहर से प्रेम करता है उसे ग़ुस्सा आता है। ग़ुस्से में निकला होगा। तो उसका इतना बड़ा जो माहौल बनाया, वो बनाना नहीं चाहिये था।

आशुतोष - टीवी पर तो चला कि संजय जी एक महिला का अपमान करते हैं। उनके प्रति सम्मान नहीं है।

संजय - एक महिला किसानों का अपमान करती है। किसानों को टेररिस्ट बोलती है। एक महिला मुंबई जो आर्थिक राजधानी है, उसका अपमान करती है। एक महिला हमारी मुंबई पुलिस जो बेस्ट पुलिस है उसका अपमान करती है। एक महिला महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का अपमान करती है, उसको कोई सवाल नहीं पूछते हैं क्योंकि वो महिला है? 

आशुतोष- एक सवाल आपसे पूछूँगा। आप बुरा भी न मानें और जवाब भी दें। एक ज़माना था जब लोग कहते थे कि मुंबई के अंदर, महाराष्ट्र के अंदर कोई बाला साहेब के ख़िलाफ़ एक शब्द बोलकर नहीं निकल सकता, और जिसने कोशिश की उसे सबक़ मिला। आपके उद्धव ठाकरे जो मुख्यमंत्री हैं उनके ख़िलाफ़ एक टीवी का संपादक, अर्णब गोस्वामी जिस भाषा का इस्तेमाल पिछले दो महीने से कर रहे थे और फिर एक एक्ट्रेस कंगना रनौत जिस भाषा का इस्तेमाल कर रही थीं, हे उद्धव ठाकरे, तू जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया, क्या आपको लगता है कि शिवसेना कमज़ोर पड़ गयी है? 

संजय - शिवसेना कमज़ोर नहीं पड़ी है। शिवसेना सत्ता में है। और उसके ऊपर क़ानूनन कार्रवाई हो जायेगी। हमारे लोग बहुत ग़ुस्से में हैं। हमने पहले भी कहा कि जब अपोज़िशन में थे तो एक इशारे पर लोग सड़क पर उतरते थे। जो चाहे हम करते थे। मेरे ऊपर 140 केस चल रहे हैं। हम डरने वाले लोग नहीं हैं। आगे भी नहीं डरेंगे। सत्ता आती है। सत्ता चली जाती है। सत्ता कोई लेकर आता नहीं है कि हमी सत्ता में रहेंगे। सबको जाना है, छोड़ना है, और जो भौंकते हैं हमारे ऊपर उनको भी मालूम है, डर तो उनके मन में भी है, ऊपर से दिखा रहे हैं, जब समय आयेगा तो बता देंगे। भूले नहीं हैं, हमारा अपमान और न भूलेंगे। ये महाराष्ट्र है।

आशुतोष - इतनी हिम्मत कैसे पड़ जा रही है उन लोगों की। मुझे याद है बाला साहेब की गिरफ़्तारी की जब बात हुई थी तो पुलिस को कितनी मशक़्क़त करनी पड़ी थी। बाला साहेब के कहने के बाद ही शांत हुआ था। चाहे वो कितना भी बड़ा आदमी रहा हो, चाहे वो आडवाणी रहे हों वो मातोश्री जाते थे, और कोई  बाला साहेब के ख़िलाफ़ बोल नहीं पाता था। आज उद्धव ठाकरे का, आदित्य का नाम लेकर तू की भाषा में बात की जा रही है, कि हे उद्धव ठाकरे तो सवाल तो खड़ा होगा कि शिवसेना कमज़ोर पड़ गयी है, लगता है? 

संजय - कोई शिवसेना कमज़ोर नहीं पड़ी है। ये जो लोग भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उनके पीछे कौन हैं, किसके इशारे पर इस भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, ये जानकारी हमारे पास है। मैंने कहा न समय आते सब कुछ हो जायेगा। सबको जवाब दिया जायेगा। और वो भी शिवसेना के स्टाइल से जवाब दिया जायेगा। बड़ी-बड़ी बात करते हो, कितने दिन करोगे। उद्धव जी के बारे में जो इस्तेमाल करते हो, करते रहिये, मेरी शुभकामनाएँ हैं, करते रहिये, बाद में तो...

आशुतोष - तो क्या मानें कि टीआरपी की जो प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई वो या जो बीएमसी ने बंगले पर तोड़फोड़ की ये शिवसेना स्टाइल में समझाने की कोशिश थी?

संजय - अब तक शिवसेना ने कुछ किया ही नहीं है। ये तो बीएमसी की कार्रवाई है। जब शिवसेना करना चाहेगी तो जब शिवसेना करेगी तो शिवसेना को कोई रोकेगा भी नहीं। 

आशुतोष - कब करेंगे?

संजय - करेंगे आशुतोष जी।  

आशुतोष - आपने कहा कि आपको मालूम है कौन लोग इनके पीछे हैं। किसके इशारे पर हो रहा है, कौन लोग हैं? 

संजय - ये सामने आ जायेगा। जैसे पुलिस ने भांडाफोड़ किया वैसे वो भी सामने आ जायेगा।

आशुतोष - आपका इशारा दिल्ली की तरफ़ तो नहीं है? 

संजय - सब सामने आ जायेगा। हमारा इशारा किसी तरफ़ नहीं है। हम अपनी लड़ाई लड़ने के लिये समर्थ हैं। क़ाबिल लोग हैं।

आशुतोष - मुंबई के अंदर जहाँ शिवसेना की सरकार है, वहाँ पर बैठ कर अगर कोई शिवसेना के मुख्यमंत्री के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करे, तो उसके पीछे का जो शख़्स होगा वो मुंबई की सरकार से ज़्यादा पावरफुल होगा, तभी वो कर रहा होगा। कौन हो सकता है वो? 

संजय - कोई भी हो। किसकी भी ताक़त हो। ताक़त का क्या उसे होने दो। क्या करेंगे? कितने दिन आप भौंकते रहेंगे? हमारी तो शिवसेना। हर व्यक्ति एक टाइगर है। उनकी गर्जना तो होती रहेगी और समय आने पर आपके ऊपर भी वो साल करके आ जायेगा। और हमारी परीक्षा लेने की कोशिश भी मत करिये, ये सब को मालूम है। सब लोग मानते थे एक साल पहले, ये क्या सरकार बनायेंगे, ये लोगों में क्या हिम्मत है। कैसे अपना मुख्यमंत्री बनायेंगे। मुख्यमंत्री बना। सरकार चल रही है। अब ये सरकार गिरायेंगे। सरकार चल रही है। सरकार पाँच साल चलेगी। और पाँच साल के बाद भी हमारी ही सरकार आयेगी। एक चैनल की बात जो आप करते हो, इग्नोर कर दीजिये।

आशुतोष - इग्नोर करना शिवसेना का स्टाइल नहीं है? 

संजय - आप इग्नोर कर दीजिये। हम देख लेंगे। इतना मैं कह रहा हूँ। 

आशुतोष - इग्नोर करना इतना तो मैं भी जानता हूँ। बालासाहेब से तो कभी नहीं मिला। लेकिन जब आपकी सरकार बनी थी। मनोहर जोशी की सरकार, राणे की सरकार, और उसके बाद का मैं भी जानता हूँ। इतना तो मालूम है कि शिवसेना तो इग्नोर तो नहीं करती।

संजय - हम कभी नहीं भूलेंगे और भूलना भी नहीं चाहिये। 

आशुतोष- आज जब मैं आप से बात कर रहा हूँ, आप अंदर से थोड़ा दुखी लग रहे हैं, आप बंधे हुये भी लग रहे हैं। 

संजय - दुखी नही। देखिये। सरकार जब होती है तो थोड़े बंधन तो होते हैं। बहुत संभल कर बात भी करनी होती है और बहुत संभल कर एक्शन भी करना होता है। ये सरकार की एक मजबूरी भी होती है, सरकार चलाने की। मेरी वजह से सरकार को कोई कठिनाई नहीं आनी चाहिये, उन्हें तकलीफ़ नहीं आनी चाहिये। और सरकार ठीक तरह से चलनी चाहिये।  

आशुतोष - इस विषय से अलग हट के बात करें। पिछले दिनों आपकी देवेंद्र फडनवीस से मुलाक़ात हुई। बहुत सारी चर्चाएँ हुईं। कहीं शिवसेना और बीजेपी साथ तो नहीं आ रही हैं?  

संजय - देखिये ऐसा नहीं है। देवेंद्र फडनवीस महाराष्ट्र के प्रमुख नेता हैं। लीडर ऑफ़ अपोज़िशन है। मुख्यमंत्री रहे। अब मैं मानता हूँ कि राष्ट्रीय स्तर पर उनका एक ताक़त बन गया है। और मैं हमेशा मानता हूँ कि हमारे जो विरोधी हैं, उनसे बातचीत होनी चाहिये। उनको भी राज्य चलाने का, प्रशासन चलाने का अनुभव है। उनकी भी कुछ बातों का समझ कर, उनकी भी कुछ भूमिका है, हमें समझ लेना चाहिये। मैं एक संपादक हूँ। मैं भी चाहता हूँ कि हमारे ख़िलाफ़ जो हमेशा बोलते हैं, सरकार को बाहर रहकर मार्गदर्शन करते हैं, आमने-सामने बैठ कर बात करें। ये हमारी परंपरा है। हमारे राज्य में कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है। पवार साहब थे। एक साल पहले उनके ख़िलाफ़ चुनाव लड़े, प्रचार किया और अब हम एक साथ सत्ता में हैं। कांग्रेस है हमारे साथ! हमारे राज्य में और राज्य की तरह जो विरोधी हैं, उनसे इस प्रकार की दुश्मनी नहीं बनती है। दूसरे की तरफ़ देखो भी नहीं। एक दूसरे से बात भी नहीं करो। हम हमेशा एक दूसरे के साथ डायलॉग रखते हैं। और देवेंद्र जी, के साथ डायलॉग हमेशा रहा है। 

आशुतोष - लेकिन संजय जी पहली बार ऐसा हुआ है जब उद्धव जी के बेटे को टारगेट किया गया। फ़ैमिली को टारगेट किया गया और उनकी छवि को ख़राब करने की कोशिश की गयी। ऐसे आरोप लगाये गये जो शायद कोई शरीफ़ आदमी बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। 

संजय - मैं यह मानता हूँ कि कोशिश बहुत हुई। लेकिन वो नाकाम रहे। इसलिये मैंने कहा “वेट एंड वाच” ।अभी-अभी शुरुआत हुई है वेट एंड वाच। 

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आशुतोष - क्या समझें आपकी बात को, “वेट एंड वाच को”। आप एक्सपोज़ करेंगे? 

संजय - आप बहुत कुछ समझ सकते हैं। आपको बहुत कुछ मालूम है। 

आशुतोष - क्या बीजेपी शिवसेना के रिश्ते हमेशा के लिये ख़त्म हो गये? 

संजय - राजनीतिक रिश्ते तो ख़त्म हैं, वो अपोज़िशन में हैं हम सरकार में हैं। तीन पार्टी की सरकार है, हमारा मुख्यमंत्री है। अब ये सिस्टम है। पाँच साल सरकार चलेगी। पाँच साल तक उसमें मुझे लगता नहीं कि कोई गड़बड़ होगी।

आशुतोष- क्या मोदी जी और अमित शाह को अंडरएसटिमेट कर रहे हैं? 

संजय - नहीं। मैं नरेंद्र मोदी जी को हमेशा देश का सबसे बड़ा नेता मानता हूँ। आज वो प्रधानमंत्री हैं देश के वो नेता हैं। अमित शाह जी देश के गृह मंत्री हैं। लेकिन सरकारें गिराना और बनाना, यही काम उनके पास नहीं है। और भी बहुत से काम पड़े हैं। करते रहेंगे। जम्मू और कश्मीर का मसला है, सबसे बड़ा है। कोरोना का संकट है। चार साल तक उनके पास काम बहुत है। देश को वापस खड़ा करना है। जीडीपी का मामला है। जीडीपी देखो क्या है, बेरोज़गारी का सवाल है। तो महाराष्ट्र की एक सरकार के लिये वो अपनी पूरी ताक़त नहीं लगायेंगे। मैं आपको बताना चाहता हूँ कर्नाटक हो, मध्य प्रदेश हो या राजस्थान हो, महाराष्ट्र अलग राज्य है।

आशुतोष - आपके इस कांफिडेंस का कारण क्या है? मैं हैरान हूँ आपके कांफिडेंस को देखकर। तीन पार्टियाँ हैं। कोई एक पार्टी को तोड़कर अपनी सरकार बना सकते हैं।

संजय - देखिये एक भी पार्टी नहीं टूटेगी। जब हम सरकार बना रहे थे तब भी मुझे यही कांफिडेंस था। लोग कह रहे थे। लेकिन मैं अकेला बोल रहा था कि सरकार बन रही है। तब भी किसी का विश्वास नहीं था। मुझे मालूम है पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, मंच पर क्या हो रहा है, इतना आसान नहीं है सरकार गिराना। तीन में से एक भी पार्टी सरकार से बाहर नहीं जायेगी। 

आशुतोष- उनके एमएलए तो टूट सकते हैं? 

संजय - एमएलए क्या हमारे ही टूट सकते हैं? और किसी के नहीं टूट सकते हैं क्या? 

आशुतोष - क्या संजय जी के मन में नहीं होता कि वो मंत्री बन जाएँ? सामना की संपादकी कब तक चलेगी? 

संजय - सामना की जो संपादकी है। यहाँ मुझे तीस साल हो गये हैं। जब मैं एडिटर बना तो मेरी उम्र 28 साल की थी। अब मैं साठ हो चुका हूँ। मुझे लगता है कि बाला साहेब से जो मेरे रिश्ते रहे हैं, वो आज भी हैं। आज भी मैं उनकी प्रेरणा से काम करता हूँ। और अब क्या बनना है। इतने साल से दिल्ली में सांसद हूँ। पार्टी का नेता हूँ। सामना का संपादक हूँ। एक ऐसा अख़बार है जिसे पूरा देश जानता है। और क्या चाहिये। मंत्री आते हैं,  मंत्री चले जाते हैं।

आशुतोष - धन्यवाद आपका।

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