कर्नाटक भाजपा के सात बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश जिगाजिनागी ने अपनी ही पार्टी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है। नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पिछले दस साल से खामोश आवाजें अब मुखर होने लगी हैं। इसका एक कारण जाहिर तौर पर नरेंद्र मोदी की गठबंधन सरकार है। भाजपा के 240 सीटों पर सिमटने के बावजूद नरेंद्र मोदी अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुए। लेकिन उनकी कैबिनेट में दलितों को कोई तवज्जो नहीं मिली। पिछली बार राज्यमंत्री रहे रमेश जिगाजिनागी को इस बार कैबिनेट मंत्री बनाए जाने की उम्मीद थी। उन्होंने अपने समर्थकों के ज़रिए यह आरोप लगाया है कि भाजपा दलित विरोधी पार्टी है। बीजेपी में सवर्णों का दबदबा है। सवर्णों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। जाहिर तौर पर यह कोई नई बात नहीं है लेकिन भाजपा के ही एक वरिष्ठ दलित सांसद द्वारा लगाए गए आरोप के अपने मायने हैं।

दलितों के हित में ना तो कोई एजेंडा सामने आया और ना ही कोई नीति बनी। इसके उलट पिछले 10 साल के नरेंद्र मोदी के शासनकाल में दलितों पर हिंदुत्ववादियों द्वारा शारीरिक हमले किए गए।
सदियों से जारी दलितों का अपमान और उत्पीड़न आज़ादी के बाद भी कमोबेश जारी है। हालाँकि संविधान और कानून के अधिकारों ने उन्हें सुरक्षा ज़रूर प्रदान की है, लेकिन समाज में जड़ें जमाए ब्राह्मणवादी सामंतवाद के अहंकार और दमन के आगे भूमिहीन, कमजोर, अशिक्षित दलित अपमानित होने और मरने-पिटने के लिए अभिशप्त है। हालांकि, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था और आरक्षण के अधिकार से दलितों के भीतर एक छोटा सा मध्यवर्ग उभरा है। सामाजिक जागरूकता पैदा हुई है। राजनीतिक चेतना के जरिए दलित अपना एजेंडा और प्रतिनिधित्व के अधिकार को समझने लगे हैं। लेकिन ब्राह्मणवादी ताक़तें इस परिवर्तन को मिटाने के लिए सक्रिय रही हैं। भारत की समावेशी और सामाजिक न्याय की राजनीति के बरक्स आजादी के बाद ही हिंदुत्व की राजनीति शुरू हुई। आरएसएस इस राजनीति का संचालक और बौद्धिक केंद्र है। आरएसएस ने पहले श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में 1951 में भारतीय जनसंघ को खड़ा किया। जनसंघ के ज़रिए आरएसएस को पहली बार सत्ता में पहुँचने का मौक़ा जनता पार्टी की सरकार (1978 -1980) में मिला।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।