मेघना गुलज़ार और दीपिका पादुकोण की फ़िल्म 'छपाक' इन दिनों न केवल सिने प्रेमियों बल्कि हर आम और ख़ास के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। यूँ तो दीपिका पादुकोण की फ़िल्मों को लेकर दर्शकों में अच्छा ख़ासा उत्साह रहता है लेकिन ‘छपाक’ के राजनीतिक विरोध के बाद आम आदमी यह फ़िल्म देखने को थियेटर तक जाने के लिए थोड़ा हिचक रहा है। मेरे कई जानने वालों ने मुझे फ़ोन कर पूछा कि भैया फ़िल्म देखने चले जाएँ? कोई बवाल तो नहीं है? अच्छा भैया ये बताओ कि एसिड फेंकने वाला फ़िल्म में हिन्दू दिखाया गया है न?
‘छपाक’ का विरोध एसिड अटैक पीड़िताओं के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा
- विचार
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- 14 Jan, 2020

मेघना गुलज़ार और दीपिका पादुकोण की फ़िल्म छपाक चर्चा का विषय बनी हुई है। फ़िल्म का विरोध करने वाले तेजाब हमले की पीड़िताओं के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
सत्ताधारियों का विरोध हो तो कोई भी व्यक्ति निश्चय ही सौ बार सोचेगा और डरते-डरते पहुँचेगा। हालाँकि जब मैं ‘छपाक’ देखने मेरठ के शॉपरिक्स मॉल पहुँचा तो शो हाउसफ़ुल था। शहर के कई जानकार बुद्धिजीवी, वकील, डॉक्टर और राजनीतिक दलों से जुड़े लोग दिखाई दिए। इन्हीं के बीच राष्ट्रीय लोकदल के उत्तराधिकारी जयंत चौधरी भी अपनी पत्नी के साथ थे और उनकी पार्टी के कुछ लोग भी थे।