सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। अब सीएए-एनआरसी से मुसलमानों को चिढ़ाने तक मसला नहीं सिमटा है। भारत की अर्थव्यवस्था के कार्पोरेटीकरण की कवायद में आम लोगों के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। आनन-फानन में लाए गए 3 कृषि क़ानूनों से किसानों में उबाल है। वहीं सरकार ने बजट में तमाम सरकारी कंपनियों व बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की मंशा जता दी है।
किसान, मज़दूर परेशान तो विपक्ष के नाते क्या कर रही कांग्रेस?
- विचार
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- 12 Feb, 2021

सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस को बयानबाजियों और दूसरे के धरनों व रैलियों में जाने से इतर अपनी रणनीति साफ़ करने की ज़रूरत है।
कृषि क़ानून संसद में पारित होने के बाद से ही किसान आंदोलित हैं। शुरुआत में उनका आंदोलन पंजाब तक सिमटा था। रेल की पटरियों पर किसान बैठ गए। यात्री रेलगाड़ियाँ कोरोना के कारण पहले से ही ठप रखी गई थीं और जब मालगाड़ियों की आवाजाही प्रभावित होने लगी तब ख़बर बनी। बिजली संयंत्रों को कोयले की कमी होने लगी और ऐसा लगा कि अब पंजाब ही नहीं, दिल्ली तक अंधेरे में डूब जाएगी, तब पंजाब के मुख्यमंत्री ने मध्यस्थता कर मालगाड़ियों की आवाजाही सुनिश्चित कराई। क़रीब 2 महीने तक चले इस आंदोलन पर देश का ध्यान नहीं गया। केंद्र सरकार को इसे गंभीरता से नहीं लेना था, नहीं लिया।