सरकार ने सुधारों के नाम पर जनता के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। अब सीएए-एनआरसी से मुसलमानों को चिढ़ाने तक मसला नहीं सिमटा है। भारत की अर्थव्यवस्था के कार्पोरेटीकरण की कवायद में आम लोगों के अधिकारों पर हमले हो रहे हैं। आनन-फानन में लाए गए 3 कृषि क़ानूनों से किसानों में उबाल है। वहीं सरकार ने बजट में तमाम सरकारी कंपनियों व बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की मंशा जता दी है।