जम्हूरियत वो तर्जे हुकूमत है, जिसमें बन्दों को गिना जाता है, तोला नहीं जाता।।

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर खांटी समाजवादी नेता थे। पढ़िए उनकी 15 वीं पुण्यतिथि पर यह लेख।
चंद्रशेखर जी की राजनीतिक शख्सियत पर यह शेर बिल्कुल मौजूँ है। समाजवादी पार्टी से अलग होने- कांग्रेस में जाने और फिर आपातकाल में कांग्रेस से अलग होने के बाद भले ही वे राष्ट्रीय राजनीति में अग्रणी भूमिका में रहे। पर जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के बावजूद वे कर्नाटक को छोड़कर ऐसा सांगठनिक ढांचा नहीं खड़ा कर पाए, जो आगे उनकी राजनीतिक सफलता की राह को आसान बनाता। दलीय राजनीति से इतर राजनीतिक मित्रों का उनका 'नेटवर्क' ना केवल बड़ा था, बल्कि कई बार इस वजह से भी उनके अपने भी उनका साथ छोड़ते-आते-जाते रहें। कुछ उनकी इस राजनीतिक पसंदगी- नापसन्दगी की वजह से नफ़रत भी करते रहें। पर चंद्रशेखर जी कभी इसकी परवाह कहां करते थे।
एक जमाने में स्वर्गीय मधुदंडवते और सुरेन्द्र मोहन, चंद्रशेखर के बड़े करीबी रहे। पर जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाने की बारी आयी, तो चंद्रशेखर ने अजित सिंह का नाम आगे बढ़ा दिया। उत्तर प्रदेश में जनता दल की सरकार के गठन के वक्त अजित सिंह का समर्थन करने के नाते मुलायम सिंह की नाराजगी झेलनी पड़ी।
बिहार में लालू प्रसाद यादव की मुख्यमंत्री की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपने करीबी रहे रघुनाथ झा को मैदान में उतार दिया। तब मुख्यमंत्री की दौड़ में रामसुंदर बाबू का नाम आगे चल रहा था।