भक्ति तर्क और तथ्य से परे होती है। भक्ति में डूबकर लिखे गए किसी भी आख्यान या मान्यता को तथ्यों की कसौटी में नहीं कसा जा सकता। जब कोई कहता है कि ‘मेरी ऐसी मान्यता है’, तो बात वहीं ख़त्म हो जाती है। दुनिया के सभी धर्म सिर्फ़ मान्यता की बुनियाद पर टिके हुए हैं। मान्यता है कि ईसा मसीह का जन्म कुँवारी मरियम के गर्भ से हुआ था। मान्यता है कि इस्लाम के पैग़म्बर मोहम्मद बुर्राक घोड़े पर सवार होकर सात आसमानों के पार अल्लाह से मिलने गए। मान्यता है कि क़यामत के रोज़ सब मुर्दे अपनी-अपनी क़ब्रों से उठ खड़े होंगे और अल्लाह उनका हिसाब-किताब करेगा। मान्यता है कि हज़रत मूसा ने समंदर को फाड़कर रास्ता बना दिया था। मान्यता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, विष्णु ने उसे सजाया-सँवारा और शिव उसका संहार करेंगे। मान्यता है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या नगरी में ठीक उस जगह पर हुआ था जहाँ बाबर के सिपहसालार मीर बाक़ी ने 1528 में बाबरी मस्जिद बनाई। इन मान्यताओं को चुनौती कैसे दी जा सकती है? आप ऐतिहासिक तथ्यों पर विवाद कर सकते हैं। नए तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं। वैज्ञानिक अवधारणाओं को झुठला सकते हैं। पर भक्ति रस में डूबे किसी व्यक्ति के विश्वास को तर्क की कसौटी पर कैसे कसेंगे?
संविधान गारंटी दे पाएगा कि तपस्या के लिए किसी शंबूक की हत्या न हो?
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- 28 Apr, 2024

हेमंत शर्मा की पुस्तक ‘राम फिर लौटे’ में ‘हमारी राष्ट्रीयता’ में ‘हम’ कौन हैं? क्या मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदी और नास्तिक को भी राष्ट्रीयता के इस ‘मंदिर’ में उन्हें कोई जगह मिलेगी? पढ़िए राजेश जोशी की समीक्षा।
पत्रकार हेमंत शर्मा की किताब ‘राम फिर लौटे’ विश्वास और भक्ति के ऐसे ही रस में डूबकर लिखी गई है। इसके लोकार्पण का समय बहुत महत्वपूर्ण है। अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से लगभग एक महीना पहले दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारियों की मौजूदगी में इसका लोकार्पण किया गया। किताब का शीर्षक संघ परिवार और उसके समर्थकों के इस दावे पर मुहर लगाता है कि पूरे 500 बरस बाद राम अयोध्या लौटे हैं। भारतीय जनता पार्टी के समर्थकों ने प्राण प्रतिष्ठा के आसपास गाना शुरू कर दिया था – जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएँगे – दुनिया में फिर से हम भगवा लहराएँगे!