कोरोना महामारी पूरी दुनिया में फैली हुई है। भारत भी इससे जूझ रहा है। पूरे देश में तालाबंदी है। बाज़ार बंद हैं, यातायात बंद है, दूसरे सामाजिक उपक्रम बंद हैं और विश्वविद्यालय जैसे दूसरे सामाजिक प्रतिष्ठान भी बंद हैं। पिछले एक महीने में मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने भारत के विश्वविद्यालयों को जो निर्देश दिए हैं उन्हें देख कर लगता है कि इस ‘कोरोना काल’ में उच्च शिक्षा को प्रतिबद्धता एवं कर्तव्यनिष्ठता के नाम पर त्रासद प्रहसन में बदल दिया गया है।
कोरोना काल: विश्वविद्यालयों पर बंदिशें क्यों; क्या शिक्षा के केंद्र नहीं, सरकारी एजेंसी हैं?
- विचार
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- 12 Apr, 2020

5 मार्च 2020 से ले कर 11 अप्रैल 2020 तक विश्वविद्यालयों को जारी पत्रों ने यह साफ़ किया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सरकार की मात्र एजेंसी समझा जा रहा है।
5 मार्च 2020 से ले कर 11 अप्रैल 2020 तक इन दोनों संस्थाओं द्वारा जारी पत्रों ने यह साफ़ किया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सरकार की मात्र एजेंसी समझा जा रहा है। इस एक महीने की अवधि में जारी इन पत्रों और निर्देशों को देख कर यह समझ में आता है कि इनके माध्यम से भारत के विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण का शिकंजा क्रमश: बढ़ता जा रहा है। ये दोनों संस्थाएँ निर्देश जारी करती हैं और विश्वविद्यालय अपनी स्थिति और संदर्भ को बिना देखे इन निर्देशों का पालन करने को बाध्य हो जाते हैं।