जो लोग न्याय और बराबरी के आदर्शों में यक़ीन रखते हैं उनके लिए अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, की माली हालत गंभीर चिंता का विषय है। भारत में इस्लाम सातवीं सदी में अरब व्यापारियों के साथ मलाबार तट के रास्ते आया। तब से बड़ी संख्या में हिन्दुओं ने इस्लाम अपनाया है। मगर इनमें से ज़्यादातर लोग वे थे जो हिन्दू धर्म में जातिगत दमन के शिकार थे और आर्थिक रूप से वंचित थे। जिसे हम मुग़लकाल कहते हैं उसमें मुस्लिम बादशाह दिल्ली और आगरा से राज भले ही करते थे मगर उनके राज से समाज के ढाँचे पर कोई खास असर नहीं पड़ा। अधिकांश ज़मींदार हिन्दू थे और वे अत्याचार करने के मामले में ग़रीब मुसलमानों और ग़रीब हिन्दुओं के बीच कोई भेदभाव नहीं करते थे।
धार्मिक अल्पसंख्यकों की माली हालत में सुधार कैसे संभव?
- विचार
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- 29 Mar, 2025

धार्मिक अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए आरक्षण बेहतर उपाय है या अफर्मेटिव एक्शन? नीति और सामाजिक प्रभाव पर विस्तृत विश्लेषण पढ़ें।
सन 1857 के विद्रोह के बाद मुसलमान अंग्रेजों के निशाने पर आ गए। कारण यह कि इस विद्रोह के नेता बहादुरशाह ज़फर थे। मुस्लिम समुदाय को अंग्रेजों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा। स्वाधीनता के बाद मुसलमानों के बारे में मिथक और उनके प्रति पूर्वाग्रह मज़बूत होते गए और वे साम्प्रदायिक ताक़तों के सबसे बड़े शिकार बन गए। जहां अन्य समुदाय आगे बढ़े और उनके सदस्यों ने शिक्षा और रोजगार हासिल किए वहीं कई कारणों से मुसलमान पीछे छूट गए। इन कारणों में उनके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार और उनकी आर्थिक बदहाली शामिल थे।