10 मई 1857, दिन रविवार को छिड़े भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में देश के हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों ने मिलकर विश्व की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी ताक़त को चुनौती दी थी। इस अभूतपूर्व एकता ने अंग्रेज़ शासकों को इस बात का अच्छी तरह अहसास करा दिया था कि अगर भारत पर राज करना है तो हर हालत में देश के सबसे बड़े दो धार्मिक समुदायों, हिंदू-मुसलमान के बीच सांप्रदायिक बँटवारे को अमल में लाना होगा। यही कारण था कि संग्राम की समाप्ति के बाद इंग्लैंड में बैठे भारतीय मामलों के मंत्री (लॉर्ड वुड) ने भारत में अंग्रेज़ी राज के मुखिया (लॉर्ड एल्गिन) को यह निर्देश दिया कि अगर भारत पर राज करना है तो हिंदुओं और मुसलमानों को लड़वाना होगा और ‘हम लोगों को वैसा सब कुछ करना चाहिए, ताकि उन सब में एक साझी भावना का विकास ना हो।’