पाँच जनवरी को देश में लोकतंत्र की मौत हो गयी। यह दुखद है, लेकिन सच है। हिंसा का जो तांडव देर रात जेएनयू में हुआ, उस पर मेरे पास कहने के लिये इस से ज़्यादा असरदार शब्द नहीं है। जो हुआ, देश ने देखा। लाइव टीवी पर इसकी तसवीरें सब के पास पँहुचीं। सोशल मीडिया पर वाइरल हुईं और हम जैसे नागरिक बेबस बस देखते रहे। ऐसी बेबसी का एहसास शायद ही कभी महसूस किया हो।