हम भारतीय बड़े ख़ुशक़िस्मत हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं कोई मोदी का भक्त हूँ। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मोदी जी ग़रीबी में पले और बड़े हुए हैं, इसलिए कि वह कभी रेलवे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे, इसलिए कि वह प्रधानमंत्री बनने के पहले अपने दोस्त डोनाल्ड ट्रंप की तरह अरबपति नहीं थे। मैं उनका दुश्मन नहीं हूँ। मैं उनका आलोचक हूँ। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूँ कि ग़रीबी में पला-बढ़ा आदमी ही इंसानी ज़िंदगी की दुश्वारियों को समझता है, इसलिए कि वह जानता है कि इंसानी ज़िंदगी की क़ीमत क्या होती है, इसलिए कि वह फ़ैसले करने के पहले यह नहीं सोचता कि उसे कितने करोड़ों रुपये या डॉलर का नुक़सान होगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के पास अथाह पैसा है। राष्ट्रपति बनने के पहले अमेरिका के बड़े दौलतमंदों में वह शुमार होते थे। वह टीवी के प्रोग्राम करते थे और बड़े सेलिब्रिटी थे। राष्ट्रपति बनने के बाद अब यही चश्मा अमेरिका के लिए भारी पड़ रहा है। ट्रंप का सोचना है कि कोरोना से जितने लोग मरेंगे उससे अधिक लोग अर्थव्यवस्था चौपट होने से मरेंगे। लिहाज़ा कोरोना से राष्ट्रव्यापी बंदी कोई समाधान नहीं है। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री के बारे में ऐसा नहीं है...
डोनाल्ड ट्रंप की अमीरी अब अमेरिका के लोगों के लिए मुसीबत का एक बड़ा पहाड़ लेकर टूट पड़ी है। कोरोना महामारी अमेरिका को निगलने को तैयार बैठी है और ट्रंप यह सोच रहे हैं कि अगर पूरे देश में सोशल डिस्टेंसिंग या लॉकडाउन किया तो फिर अमरीकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो जाएगी और अमेरिका को फिर से महान बनाने का उनका सपना चूर-चूर हो जाएगा। उन्हें डॉलर की चमक आम अमेरिकी की ज़िंदगी से अधिक खनकदार लग रही है।
यही कारण है कि अमेरिका कोरोना से लड़ने में चूक गया है और अब WHO का कहना है कि अमेरिका कोरोना संकट का सबसे बड़ा केंद्र होने जा रहा है। अमेरिका का सबसे भव्य और सबसे चमकदार शहर, पूँजीवादी व्यवस्था का सबसे बड़ा केंद्र, न्यूयॉर्क इस वक़्त कोरोना का दुनिया में सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। अमेरिका के कुल कोरोना पॉजिटिव केस के 40% मामले न्यूयॉर्क में हैं।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।