19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत के कई वर्षों तक प्लेग ने देश के कई नगरों, महानगरों में कहर ढाया था। लेकिन हर जगह उसका असर अलग-अलग था। यह बहुत कुछ इस पर भी निर्भर था कि शहर, उसके लोगों और वहां के संगठनों ने महामारी पर कैसी प्रतिक्रिया दी। इस दौरान देश के दो महानगरों मुंबई और कोलकाता में जो फर्क दिखा, आज के कोरोना काल में उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

रामकृष्ण मिशन और सिस्टर भगिनी निवेदिता के लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करने और ज़मीन पर काम करने के कारण ही कोलकाता मुंबई के मुक़ाबले प्लेग से ज्यादा अच्छे ढंग से निपट सका।
यह ठीक है कि 1896 में प्लेग सबसे पहले मुंबई में पहुंचा। लेकिन कुछ ही महीनों में यह पूरे देश में फैल गया। मुंबई में इसे लेकर काफी उग्र प्रतिक्रिया हुई, सरकार की तरफ से भी और उसके जवाब में जनता की तरफ से भी। इसे लेकर जनता में जागरूकता फैलाने के बजाए उस पर सरकारी आदेशों के पालन का दबाव बनाया गया।