भारत में ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ की हालिया उठापटक, जाति को ख़त्म करने और अधिक समानमूलक समाज लाने के आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है। यह झटका एक दुर्घटना नहीं है: हिंदू राष्ट्रवाद के बढ़ते क़दम को लोकतंत्र की समतावादी माँगों के ख़िलाफ़ उच्च जातियों के विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है।
आरएसएस का हिंदू राष्ट्रवाद यानी सवर्णों का विद्रोह
- विचार
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- 5 Oct, 2020

भारत में ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ लोकतंत्र की समतावादी माँगों के ख़िलाफ़ उच्च जातियों के विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है। हिंदुत्व परियोजना उच्च जातियों के लिए एक जीवनदान है जिसमें अब तक ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने का वादा किया गया है।
हिंदुत्व और जाति
हिंदू राष्ट्रवाद के आवश्यक विचारों, जिन्हें ‘हिंदुत्व’ के रूप में भी जाना जाता है, को समझना मुश्किल नहीं है। वी डी सावरकर ने ‘एसेंशियल्स ऑफ़ हिन्दुत्व’ (सावरकर, 1923) में इसे बड़ी स्पष्टता से समझाया है और एम.एस. गोलवलकर ने इसे आगे बढ़ाया है। मूल विचार यह है कि भारत ‘हिन्दुओं’ का देश है, यहाँ हिन्दुओं को सांस्कृतिक रूप से परिभाषित किया गया है, न कि धार्मिक रूप से एवं इस परिभाषा के अंतर्गत हिन्दुओं में सिख, बौद्ध और जैन शामिल हैं, लेकिन मुसलिम और ईसाई नहीं हैं। हिंदुत्व का अंतिम लक्ष्य हिंदुओं को एकजुट करना, हिंदू समाज को पुनर्जीवित करना और भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाना है।