राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को महान समन्वयवादी संगठन बताने वाले बौद्धिक हैरान होंगे कि नागपुर से दिल्ली तक और दिल्ली से लखनऊ तक क्या घमासान मचा हुआ है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि जिस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को वे विचार और नेतृत्व के अंतर्विरोध को संभालने वाला एक परिपक्व संगठन बता रहे थे उसके भीतर यह हो क्या रहा है। अब यह दावा कमजोर पड़ रहा है कि संघ ऐसा संगठन है जो मंडल की राजनीति को भी अपने भीतर समाहित कर सकता है और मंदिर की राजनीति तो उसकी अपनी है ही। वह डॉ. आंबेडकर को भी संभाल सकता है, डॉ. लोहिया को भी और हेडगेवार और सावरकर को भी। वह क्षेत्रीय राजनीति को भी संभाल सकता है और राष्ट्रीयता की राजनीति पर तो उसका एकाधिकार ही है। वह संविधान की शपथ भी ले लेगा और मनुस्मृति को भी विश्वविद्यालय में पढ़ाने का प्रस्ताव रखवाएगा। वह जातियों की सोशल इंजीनियरिंग भी करेगा और यह भी दावा करता रहेगा कि भारत में जातियों की संरचना अंग्रेजों ने की है। वरना इस देश में जातिगत भेदभाव था ही नहीं। वह कम्युनिस्टों, ईसाइयों और मुसलमानों को तीन आंतरिक शत्रु भी बताएगा और फिर सभी के भीतर प्रेम और सद्भाव विकसित करने की योजना भी प्रस्तुत करेगा।
हिंदू समाज को लेकर किस अंतर्विरोध में फंस गया संघ?
- विचार
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- 16 Jul, 2024

क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में सत्ता संघर्ष या वैचारिक अंतर्विरोध को लेकर किसी तरह का घमासान मचा हुआ है? संघ के सामने यह मुश्किल क्यों है कि हिंदू समाज को अपने पीछे गोलबंद भी करना है और उसकी सच्चाई से रूबरू भी नहीं होना है?
कुछ विश्लेषक इसे विशुद्ध सत्ता संघर्ष बता रहे हैं। वे इसे मोहन भागवत के नेतृत्व वाले संघ और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के बीच एक सत्ता संघर्ष बता रहे हैं जो सत्ता के सिकुड़ने के साथ ज़्यादा तीखा हो चला है। तो कुछ बौद्धिकों का कहना है कि यह तो महज एक नाटक है जो इसलिए चल रहा है ताकि विपक्ष के पास विमर्श का जो लोकवृत्त चला गया था वह फिर संघ के पास लौट आए। लेकिन संघ परिवार यह नहीं सोच पा रहा है कि इस दौरान उसका झूठ, उसकी अज्ञानता और गैर पढ़े लिखे नेतृत्व की दलीलें उसका दीर्घकालिक अहित कर रही हैं। हालाँकि संघ परिवार के इस अहित में भारतीय समाज, विपक्ष, लोकतांत्रिक संस्थाएं और सबसे ऊपर जनतंत्र का हित हो रहा है।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।