आख़िर मोदी सरकार ने अपना इरादा साफ़ कर दिया है कि वह सोशल और डिजिटल मीडिया पर नकेल कस कर ही रहेगी। वैसे अगर मान भी लें कि सरकार का कोई इरादा डिजिटल मीडिया पर दबाव डालने और अंकुश लगाने का नहीं है, तब भी अगर डिजिटल मीडिया के लिए लाई गई गाइडलाइन और इसके प्रावधान लागू हो गये तो डिजिटल दुनिया में जो वैकल्पिक और स्वतंत्र मीडिया उभर रहा था, उसकी सारी सम्भावनाएँ धूमिल हो जाएँगी। कारण यह है कि सरकार ने डिजिटल मीडिया पर लगाम लगाने की हड़बड़ी में डिजिटल मीडिया के व्यावहारिक पक्षों, उसके अति सीमित संसाधनों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया।
डिजिटल मीडिया का गला घोंट देगी यह गाइडलाइन
- विचार
- |
- |
- 27 Feb, 2021

सरकार की नीयत पर सबसे पहला सवाल इसी तथ्य से उठ खड़ा होता है कि देश की आधी से ज़्यादा आबादी को प्रभावित करने वाले सोशल और डिजिटल मीडिया के नियमन को लाने के पहले इस पर देश भर में व्यापक चर्चा क्यों नहीं हुई? सरकार इसे चुपचाप क्यों ले आई?
सरकार ने दरअसल, टीवी न्यूज़ चैनलों के रेगुलेटरी मैकेनिज़्म को जस का तस कॉपी-पेस्ट करके डिजिटल मीडिया के लिए पेश कर दिया, बिना इस बात का अनुमान किये कि इन गाइडलाइन का पालन कर पाना डिजिटल मीडिया के लिए बिलकुल भी सम्भव नहीं है। क्यों और गाइडलाइन से क्या व्यावहारिक दिक़्क़तें होंगी, हम एक-एक करके इसकी पड़ताल करते हैं।
स्वतंत्र स्तम्भकार. 38 साल से पत्रकारिता में. आठ साल तक (2004-12) टीवी टुडे नेटवर्क के चार चैनलों आज तक