भारतीय जनता पार्टी की स्थापना को 42 साल पूरे हो चुके हैं। 6अप्रैल 1980 को तत्कालीन जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी के नाम से अस्तित्व में आई आरएसएस की यह राजनीतिक शाखा एक दशक पहले तक न सिर्फ विचारधारा के स्तर पर बल्कि कुछ अन्य मामलों में बाकी पार्टियों से अलग मानी जाती थी।
इसमें दूसरी पार्टियों से आए लोगों को प्रवेश तो मिल जाता था लेकिन उन्हें कोई बड़ा पद या जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। बडी जिम्मेदारी पाने के लिए वैचारिक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रशिक्षण और प्रतिबद्धता को अनिवार्य माना जाता था।

पूर्वोत्तर से लेकर उत्तर प्रदेश और कई राज्यों में दूसरे दलों से आए नेताओं को बीजेपी में बड़े पद मिल रहे हैं। क्या इससे पार्टी के पुराने नेताओं में किसी तरह की बेचैनी है?
लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब बीजेपी के दरवाजे सभी पार्टियों के नेताओं के लिए यहां तक कि आपराधिक रिकॉर्ड वाले नेताओं के लिए भी खुले हैं। पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के युग की समाप्ति तथा नरेंद्र मोदी और अमित शाह का युग शुरू होने के बाद तो पार्टी ने दूसरे दलों के नेताओं को बीजेपी में लाने का एक अभियान सा छेड़ दिया है, चाहे उनकी छवि कैसी भी हो।