2017 से रिज़र्व बैंक लगातार यस बैंक पर कड़ी नज़र रख रहा था। यस बैंक ने बहुत भारी मुश्किल से गुज़र रही यानी क़र्ज़ के बोझ में दबी कंपनियों को क़र्ज़ दे रखे थे। ये अनिल अंबानी ग्रुप, एस्सेल इन्फ्रा, दीवान हाउसिंग फ़ाइनेंस और आईएलएफ़एस जैसी कंपनियाँ थीं। सबसे ख़ास बात, इन्हें क़र्ज़ देने का काम 2014 के पहले से चल रहा था। यानी इसका हिसाब पिछली सरकार को, डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार को देना है। ऐसा बताया वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यस बैंक में नई जान फूँकने की योजना का एलान करते हुए।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का यह दावा है कि 2017 से रिज़र्व बैंक लगातार यस बैंक पर कड़ी नज़र रख रहा था। अब ख़ुद दिमाग पर ज़ोर डालिए, अपने आसपास नज़र डालिए और सोचिए कि एक बैंक बंद होने का मतलब क्या होता है? फिर पूछिए सरकार से कि पिछले तीन साल से उसने निगरानी की या वह निगरानी के नाम पर नींद निकाल रही थी?
हालाँकि इस योजना का एलान रिज़र्व बैंक की वेबसाइट पर उससे कुछ ही पल पहले हो चुका था और इसके पुनर्जीवन से जुड़े किसी भी गंभीर सवाल का जवाब देने के बजाय वित्तमंत्री उसे रिज़र्व बैंक की तरफ़ ही टॉस कर रही थीं।