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सेंगोल संस्कृति के क्या हैं मायने? 

सेंगोल चोलवंश का राजदंड था। राजदंड अपने समय की शासकीय संस्कृति का भी प्रतीक होता है। अब सेंगोल आया है तो क्या उस समय की संस्कृति भी आएगी? 

चोलवंश के सामाजिक जीवन में ब्राह्मण सुप्रीम थे। सारी पावर के केंद्र वे थे। अन्य वर्णों से अलग बस्तियां बसाने का सबसे पहला कदम चोल साम्राज्य के ब्राह्मणों ने ही उठाया था। वे अपने आपको सबसे अलग दिखाना चाहते थे। 

चोलवंश अपनी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को धर्मशास्त्रों के आदेशों और आदर्शों के अनुसार चलाते थे। तो क्या आज हम 21वीं सदी में डेढ़ हज़ार साल पीछे लौटेंगे? अगर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कोई ग़लती की तो उसे दुहराया जाएगा?

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अगर नेहरू का सेंगोल ग्रहण करना इतना अहम है तो उनके बाक़ी फ़ैसले तो और भी अहम हैं। तो फिर उनकी आलोचना क्यों?

 

तो क्या अब चोलवंश की शासन व्यवस्था के अनुसार स्त्रियों को संपत्तियों की वास्तविक स्वामिनी बनाया जा रहा है? तो क्या उच्च वर्णीय पुरुषों को बहुविवाह की सुविधा दे दी जाएगी? तो क्या सती प्रथा को वापस लौटाया जाएगा? चोलवंश के मंदिरों में देवदासियों को लाया जाता था। तो क्या हमारा लोकतंत्र देवदासियों को लेकर आएगा? चोलवंश के शासकों ने दासप्रथा कायम कर रखी थी। तो क्या हम दासप्रथा की ओर लौट रहे हैं? चोलवंश ने दासों की कई कोटियां बना रखी थीं। क्या हम उस युग में देश को ले जा रहे हैं? 

चोलवंश का अपना धर्म शिव की उपासना था; लेकिन वह अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। तो क्या हम यह सब सीखने जा रहे हैं? तो क्या चोलवंश की तरह अब मंदिर सिर्फ़ एक दिन के लिए अछूतों के लिए खुलेंगे? खुलेंगे भी कि नहीं!

क्या हम अब लोकतंत्र का वह स्वरूप देखेंगे, जिसमें कापालिक और कालामुख वीभत्स रूप धारकर विकृतियों का आह्वान करेंगे और स्त्रियों को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत कर जुगुप्सा जगाएंगे? सेंगोल संस्कृति में देवी के उपासक अपने ईष्ट को अपना सिर चढ़ाते थे। तो क्या यह रूप भी इस सेंगोल के साथ आएगा? 

क्या कभी कोई युग पीछे लौटा है? हम भले रामायण को देखें या महाभारत को या अन्य ग्रंथों को। हर युग की एक लय होती है। हर युग का एक राग होता है। हर युग की ध्वनि, स्वर, ताल और आलाप होते हैं। इनसान कभी पत्थर युग में रहा था तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह एक बार फिर पत्थर युग का बुत हो जाए। 

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आज हम क्वांटम मैकेनिक्स के युग में हैं। आज चौथी औद्योगिक क्रांति शुरू हो चुकी है। क्या ऐसे समय में भी हम देश और मानव समाज को सेंगोल से चलाना चाहते हैं? अगर हमारे प्रतीक ही आगे ले जाने वाले नहीं हैं तो कैसे हम आगे जा सकेंगे? लेकिन एक प्रश्न यह कि क्या वर्णाश्रम धर्म को आप वापस ला सकते हैं? ऐसा हुआ तो क्या आपको 50 वर्ष से अधिक उम्र के सभी नेताओं को वानप्रस्थी और 75 वर्ष से अधिक के नेताओं को संन्यासी होकर वनों में नहीं चला जाना चाहिए?

(त्रिभुवन के फ़ेसबुक पेज से साभार) 

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त्रिभुवन
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