पिछले हफ्ते दिल्ली उच्च न्यायालय ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इक़बाल तन्हा की ज़मानत याचिका पर कहा कि यूएपीए का उपयोग आतंकवाद की वास्तविक घटनाओं में किया जाए, सरकार विरोधी असंतोष या विरोध प्रदर्शन के मामलों में नहीं।
हम शायद महसूस नहीं कर पा रहे हैं कि संसद और विधानसभाओं की बैठकें अब उस तरह से नहीं हो रही हैं जैसे पहले कभी विपक्षी हो-हल्ले और शोर-शराबों के बीच हुआ करती थीं और अगली सुबह अख़बारों की सुर्खियों में भी दिखाई पड़ जाती थीं।
असम के विख्यात आंदोलनकारी और विधायक अखिल गोगोई को एनआईए की विशेष अदालत द्वारा यूएपीए (ग़ैर क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) के एक मामले से मुक्त किया जाना बताता है कि उन्हें बदनीयत से फँसाया गया था।
नागरिकता क़ानून का विरोध करने के कारण दिल्ली पुलिस ने सफूरा के ख़िलाफ़ झूठे साक्ष्य बनाए और दिल्ली में दंगे भड़काने का आरोप लगाकर उसे हिरासत में ले लिया।
जवाहर लाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के छात्र नेता उमर ख़ालिद पर दिल्ली में हुए दंगों को लेकर ग़ैर क़ानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (यूएपीए) लगा दिया गया है।