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पेरियार ने राम-सीता को अपमानित किया था? रजनीकांत के आरोपों का मतलब?

दक्षिण भारत में ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल फूंकने वाले सुधारवादी -अनीश्वरवादी-दलित पिछड़ों के बडे नेता पेरियार ने क्या राम-सीता को अपमानित किया था? क्या उनकी अगुआई में चल रहे जुलूस में राम-सीता की बिना कपड़ों वाली तसवीरें रखी गई थीं और क्या उन तसवीरों को चप्पलों की माला पहनाया गया था? 
पेरियार के निधन के कई दशक बाद ये सवाल उठ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि तमिल फ़िल्मों के सुपरस्टार और राजनीति में हाथ आज़माने की कोशिश में लगे रजनीकांत के बयान पर तूफ़ान खड़ा हो गया है। 
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क्या कहा है रजनीकांत ने?

रजनीकांत ने तमिलनाडु से प्रकाशित पत्रिका ‘तुग़लक’ के पचास साल पूरा होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, ‘1971 में सेलम में पेरियार की अगुआई में निकाले गए एक जुलूस में श्रीरामचंद्र मूर्ति और सीता की बिना कपड़ों वाली प्रतिमा ले जाई गईं, जिन्हें जूतों की माला पहनाई गई थी। किसी पत्रिका ने यह ख़बर नहीं छापी, पर चो सर ने इसे छापा और इसकी काफी आलोचना की। इस वजह से उस समय की डीएमके सरकार की बहुत बदनामी हुई। उन्होंने पत्रिका को जब्त कर लिया ताकि किसी को इसकी प्रति न मिले। पर चो ने इसे फिर छापा।’
चो रामास्वामी ने तुग़लक पत्रिका शुरू की थी, यह अपने समय काफी चर्चित हुई थी और कई बार इसकी ख़बरों पर अच्छा ख़ासा विवाद भी हुआ था। चो रामास्वामी का निधन हो चुका है। फ़िलहाल हिन्दुत्व की विचारधारा से जुड़े एस. गुरुमूर्ति इसके संपादक हैं। गुरुमूर्ति अपने दक्षिणपंथी सोच के लिए जाने जाते हैं। वे स्वयं इस कार्यक्रम में मौजूद थे। 

सच क्या है?

रजनीकांत ने पत्रिका की तारीफ करने के लिए यह सब कुछ कहा और वह एक तरह से चो रामास्वामी की निडर पत्रकारिता के बारे में कहना चाहते थे। पर उन्होंने जो कुछ कहा, उस पर डीएमके समेत दूसरे दलों ने उन्हे आड़े हाथों लिया है। और जमकर राजनीति हो रही है। सत्य हिंदी  ने उनके बयान जाँच पड़ताल की ताकि आज की पीढी के सामने सच आये। 
स्वयं पेरियार ने तब इस मुद्दे पर एक ऑडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने पूरे मामले के बारे में विस्तार से बताया था। सत्य हिन्दी के पास वह ऑडियो क्लिप है, पर वह तमिल में है। वह 9 मिनट का है, इसलिए हम उसे संक्षेप में यहाँ पेश कर रहे हैं। 
पेरियार ने कहा, ‘हमने सेलम में अंधविश्वास-विरोधी रैली निकाली थी। इसे ज़बरदस्त समर्थन मिला। उस रैली में मैंने भगवानों की अश्लीलता को उजागर किया। हमने ईश्वर की भर्त्सना करने का फ़ैसला किया था।'
पेरियार ने कहा, 'वे लोग रावण का पुतला जलाते हैं तो हमने राम का पुतला रैली में जलाया था। हमने लोगों को इसका कारण भी बताया, हमने कहा कि राम  फ्राड थे और हमने वह जानकारी बोर्ड पर लिख कर टाँग दी थी। पुराणों में जो कुछ है, हमने वही सब वहाँ लिख कर रख दिया। इस रैली में लाखों लोगों ने शिरकत की थी।’ 
पेरियार ने इसके आगे कहा, ‘ब्राह्मणों का एक समूह था, जिसका नाम मंदिर सुरक्षा आन्दोलन था। ये लोग काले झंडे लेकर हमारा विरोध कर रहे थे। पुलिस वाले मेरे पास आए और कहा कि कुछ गड़बड़ होने वाला है। आपके साथ लाखों लोग हैं और सिर्फ़ कुछ सौ लोग इसका विरोध कर रहे हैं। मैंने पुलिस वालों से कहा कि आप उन लोगों को सुरक्षा दीजिए और मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि हमारे लोग नियंत्रण में रहेंगे। वे लोग हमारे साथ-साथ ही चल रहे थे, वे विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, नारे लगा रहे थे और काले झंडे दिखा रहे थे। हमारे लोग नारे लगा रहे थे, राम मुर्दाबाद, वे लोग मुझे गालियाँ देने वाले नारे लगा रहे थे अपशब्द कह रहे थे। तब हमारे लोग भी उनके ख़िलाफ़ नारे लगाने लगे और उनसे बहस करने लगे।’ 
पेरियार ने इसके बाद की जानकारी इन शब्दों में दी : 

‘हमारा विरोध करने वालों में से किसी ने अपनी चप्पल निकाल कर हमारी ओर फेंकी। हमारे लोगों में से किसी एक ने वह चप्पल पकड़ ली और उससे तसवीर को पीटने लगा। दूसरे लोग भी ऐसा ही करने लगे। उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था, पुलिस मूक दर्शक बनी रही। यह सब ख़त्म हो जाने के बाद हमने राम का पुतला फूंका।’


पेरियार, तमिल सुधारवादी नेता

राजनीतिक सरगर्मी

पेरियार के अनुसार, इस पर राजनीति शुरू हो गई और विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे एक बड़ा मुद्दा बना दिया। वह ऑडियो क्लिप में कहते हैं, ‘कामराज समेत तमाम कांग्रेसी नेता यह प्रचार करने लगे कि राम की तसवीर को चप्पलों से पीटा गया। उन्होंने एक पत्रिका शुरू की, जो आज भी चल रही है। चो या ऐसा ही कुछ नाम है, इसके संपादक थे। उन्होंने 3 लाख पोस्टर छाप कर बाँटा, जिसमें दिखाया गया था कि मैं तसवीर पकड़े हुए हूं और मेरे दूसरे हाथ में चप्पल है और करुणानिधि की तसवीर है और लिखा हुआ है, शाबाश!’ 

आउटलुक की रिपोर्ट

लेकिन 2017 में आउटलुक पत्रिका ने जी. सी. शेखर की एक रिपोर्ट छापी, जो पेरियार के दावे से थोड़ा हट कर है। ‘द तमिल गैग राज’ शीर्षक से छपे इस लेख में कहा गया है कि ‘पहला पत्थर तो करुणानिधि ने फेंका था और 1971 में डीएमके की रैली में राम-सीता की बिना कपड़ों वाली तसवीर रखी गई थी और उन्हें चप्पलों की माला  पहनाई गई थी। डीएमके ने इसका खंडन किया तो तुग़लक ने तसवीर छाप कर जवाब दिया।'
रिपोर्ट में कहा गया है, 'जब पुलिस आनंद विकतन के ऑफ़िस पहुँची तो लोगों ने पत्रिका की प्रतियाँ ऊपर से नीचे बाहर सड़क पर फेंक दी, जिसे वहाँ से उठा लिया गया और वह ऊँची कीमत पर बाज़ार में बिकी। चो ने पत्रिका के अगले अंक में एक कार्टून छापा, जिसमें करुणानिधि को तुग़लक के सर्कुलेशन व विज्ञापन एजेंट के रूप में दिखाया गया था, जिन्होंने इस नई पत्रिका के प्रचार प्रसार को बढ़ाया था।’

बीबीसी की ख़बर

बीबीसी की तमिल सेवा ने बाद में काली पूनगुन्द्रम से इस मुद्दे पर बात की थी। वह उस रैली में मौजूद थे और आज तमिल कज़गम के महासचिव हैं। उन्होंने बीबीसी से बताया था, ‘उस रैली में पेरियार भी एक ट्रक पर आ रहे थे। जनसंघ (बीजेपी का पहले नाम जनसंघ था) ने उन्हें काले झंडे दिखाने की अनुमति पुलिस से ले रखी थी।'

'जब वे काले झंडे दिखा रहे थे, उनके एक आदमी ने पेरियार पर चप्पल फेंकी। पर पेरियार की गाड़ी उससे आगे निकल गई। द्रविड़ कज़गम के कार्यकर्ता इससे नाराज़ हो गए, उन्होंने उसी चप्पल से तसवीर को पीटा।’


काली पूनगुन्द्रम, तमिल नेता

क्या कहना है तुग़लक के रिपोर्टर का?

तुग़लक के चीफ़ रिपोर्टर और लंबे समय तक चो के सहयोगी रहे रमेश ने ‘बिहाइंडवुड्स’ को दिए एक इंटरव्यू में रजनीकांत के आरोपों पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘जहाँ तक राम-सीता की तसवीर की बात थी, तो ऐसा नहीं हुआ था। पर जिस रामचंद्र की पूजा लोग करते हैं, उनका अपमान किया गया था। उन्हें अपमानित करने की तसवीर तुग़लक ने छापी थी। तुग़लक की प्रतियाँ जब्त की गयी, जिससे चो की लोकप्रियता बढ़ गई।'

'यदि रजनीकांत या द्रविड़ कज़गम के लोग आज कहते हैं कि राम-सीता की बिना कपड़ों वाली तसवीर थी, तो यह ग़लत है और मैं इसके जवाब में उस समय छपी तसवीर दिखा सकता हूं।’


रमेश, चीफ़ रिपोर्टर, तुग़लक

रजनीकांत का मक़सद?

लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि रजनीकांत आज ये बातें कह ही क्यों रहे हैं? रजनीकांत क्या राजनीति में हाथ आज़माना चाहते हैं? क्या वह तमिलनाडु में दक्षिणपंथी राजनीति को मजबूत करना चाहते हैं? क्या वह हिन्दुत्ववादी ताक़तों के प्रतीक के रूप में ख़ुद को स्थापित करना चाहते हैं?
 तमिलनाडु में हिन्दुत्ववादी राजनीति का इतिहास नहीं रहा है। इसके उलट वहां हिन्दुत्व के स्थापित प्रतीकों का विरोध बड़े पैमाने पर हुआ है और ऐसा करने वाली पार्टियां सत्ता में रही हैं। डीएमके और एआईएडीएमके दूसरे मुद्दों पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ हो सकती हैं, पर दोनों ने ही ब्राह्मणवाद और हिन्दुत्व के प्रतीकों का विरोध किया है।
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क़मर वहीद नक़वी
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