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ग़ज़ा की वजह से अमेरिका की हो रही है दुनिया भर में थू-थू?

अमेरिका पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप लग रहा है। आरोप लगा रहे हैं मध्य-पूर्व के देश। ग्लोबल साउथ के देश। ग्लोबल साउथ यानी अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों का सामूहिक। इन देशों का आरोप है कि ग़ज़ा में इज़राइली हमले और यूक्रेन में रूसी हमले पर अमेरिका का रुख दोहरे मानदंड वाला है। कुछ यूरोपीय लोग भी सवाल कर रहे हैं कि क्या पानी जैसी मूलभूत मानवीय ज़रूरत को रोकना अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं है?

इज़राइली हमले में ग़ज़ा में अब तक 4000 से अधिक लोग मारे गए। अस्पताल पर हमले हुए। दवाइयों, रसद, फ्यूल जैसी ज़रूरी सप्लाई रोक दी गई। पानी तक को भी रोक दिया गया। दुनिया ने बेकसूर पीड़ितों की मदद करनी चाही, लेकिन लंबे समय तक इज़राइल ने वह मदद भी नहीं पहुँचने दी। इसके बावजूद अमेरिका क़दम-क़दम पर इज़राइल के साथ खड़ा रहा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तक इज़राइल पहुँच गए। उसके साथी देशों के प्रमुख भी वहाँ पहुँच गए। 

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सवाल उठाए जा रहे हैं कि बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन में नागरिकों की अंधाधुंध हत्या के लिए युद्ध की निंदा करते हुए रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए तो ग़ज़ा के मामले में यह रवैया क्यों? अमेरिका रूस के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया को एकजुट करने का प्रयास करता रहा। पश्चिमी देश जुटे, लेकिन बाकी के अधिकांश देशों ने रूस पर प्रतिबंधों में भाग लेने और रूस को अलग-थलग करने से इनकार कर दिया।

अब जब हमास के हमले के बाद इज़राइल ने ग़ज़ा पट्टी पर बमबारी की है तो ग़ज़ा में बड़ी संख्या में बेकसूर नागरिकों की जानें जा रही हैं। 7 अक्टूबर से 4,300 से अधिक लोग मारे गए हैं। लेकिन यहाँ बाइडेन प्रशासन हमास के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में इज़राइल के साथ है। वह इज़राइल के समर्थन में ही वैश्विक जनमत बनाने का प्रयास कर रहा है। बाइडेन ने तो हाल ही में रूस और हमास को पड़ोस में लोकतंत्र को ख़त्म करने वाला क़रार दिया है। हमास के हमले में इज़राइल में क़रीब 1,400 लोगों के मारे गए। इसके बाद ग़ज़ा पर इजराइल के जवाबी हमले, जमीनी हमले की उसकी धमकियों के बीच अमेरिका के इज़राइल के साथ खड़े होने पर उस पर दोहरा मानदंड अपनाने का आरोप लगने लगा।

ऐसा आरोप लगाने वालों में अरब देशों के अलावा ग्लोबल साउथ के देश प्रमुख हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार न्यूयॉर्क स्थित यूरेशिया ग्रुप के अध्यक्ष क्लिफोर्ड कुपचन ने कहा है कि मध्य पूर्व में युद्ध पश्चिम और ब्राजील या इंडोनेशिया जैसे देशों के बीच बढ़ती दरार को जन्म देगा। ब्राज़ील व इंडोनेशिया जैसे देश ग्लोबल साउथ के प्रमुख देशों में से हैं। 
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फिलीस्तीन का मुद्दा लंबे समय से ग्लोबल साउथ में प्रमुखता से रहा है। ग़ज़ा युद्ध ने अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में नाराजगी बढ़ा दी है। उनका मानना है कि पश्चिम यूक्रेन को एक विशेष मामले के रूप में मानता रहा है। बर्लिन स्थित सामरिक और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन केंद्र के यूरेशिया विश्लेषक हन्ना नोटे ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, 'ऐसी धारणा है कि पश्चिम यूक्रेनी शरणार्थियों, यूक्रेनी नागरिकों की पीड़ा के बारे में यमन में, गाजा में, सूडान में, सीरिया में पीड़ितों की तुलना में अधिक परवाह करता है।' यह भी एक वजह है जिससे कि पश्चिम रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का समर्थन करने के लिए भारत और तुर्की जैसे देशों को लुभाने में विफल रहा है। 
दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले मुस्लिम देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ चल रहे 'अन्याय' की निंदा की है। इंडोनेशिया अभी भी इज़राइल को मान्यता नहीं देता है।

ब्राज़ील का भी रवैया सख़्त

अमेरिकी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला डी सिल्वा ने यूक्रेन को अमेरिकी हथियारों की आपूर्ति को युद्ध को बढ़ावा देने वाली कार्रवाई बताते हुए आलोचना की है। इस महीने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में ब्राज़ील ने ग़ज़ा में मानवीय संघर्ष विराम प्रस्ताव का मसौदा तैयार किया, जिसमें साफ़ तौर पर हमास द्वारा जघन्य आतंकवादी हमलों की भी निंदा की गई।

मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी, जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय और सऊदी विदेश मंत्री, प्रिंस फैसल बिन फरहान अल-सऊद जैसे अरब नेताओं ने काहिरा शांति शिखर सम्मेलन में दोहरे मानकों की आलोचना की।

किंग अब्दुल्ला ने कहा, 'कहीं भी नागरिक बुनियादी ढांचे पर हमला करने और जानबूझकर पूरी आबादी को भोजन, पानी, बुनियादी ज़रूरतों से वंचित करने की निंदा की जाएगी, जवाबदेही तय की जाएगी। यदि अंतरराष्ट्रीय कानून को चुनिंदा तरीके से लागू किया जाता है तो उसका सारा महत्व खत्म हो जाता है।'

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फ़िलिस्तीनियों ने ग़ज़ा पर बमबारी पर गुस्सा नहीं जताने के लिए पश्चिमी देशों की आलोचना की है। न्यूयॉर्क टाइम्स से रामल्ला स्थित फिलिस्तीनी राजनीतिक टिप्पणीकार नूर ओदेह ने कहा कि जब पहली बार यूक्रेन में युद्ध छिड़ा, तो एक देश द्वारा दूसरे की भूमि पर कब्जा करने के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा अपनाए गए सख्त रुख से फिलिस्तीनी खुश थे, लेकिन अब नहीं।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ग़ज़ा की घेराबंदी की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध में लेनिनग्राद की घेराबंदी से की है। हाल के वर्षों में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सीरिया और लीबिया में गृह युद्धों में सैन्य हस्तक्षेप करके मध्य पूर्व में सोवियत संघ के कुछ खोए हुए प्रभाव को बहाल करने की कोशिश की है। उन्होंने ईरान के साथ संबंधों को काफी मजबूत किया है। इजराइल ईरान को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।

रूस और चीन ने हमास की निंदा करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने ग़ज़ा में पानी और बिजली काटने और वहां नागरिकों की मौत को लेकर फ़िलिस्तीनियों के साथ इज़राइली व्यवहार की आलोचना की है।

यूरोप में भी कुछ नाराज़गी

यूरोप में भी यह चर्चा बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया पर चली है, जहां कुछ टिप्पणीकारों ने यूक्रेन और ग़ज़ा में युद्धों के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण के लिए आलोचना की है। पूर्व स्वीडिश प्रधानमंत्री, कार्ल बिल्ड्ट ने एक्स पर लिखा कि दुनिया के अधिकांश लोग दो युद्धों पर पश्चिमी नीति में दोहरे मानदंड को मानते हैं। यूरोपीय संघ के शीर्ष राजनयिक जोसेप बोरेल फॉन्टेल्स ने यूरोपीय संसद में एक भाषण में कहा कि पानी की आपूर्ति में कटौती अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है, चाहे यह कहीं भी हुआ हो। उन्होंने कहा, 'यूक्रेन और ग़ज़ा में मानव समुदाय को बुनियादी जल आपूर्ति से वंचित करना अंतरराष्ट्रीय कानून के विपरीत है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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