समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में असीमानंद और बाक़ी अभियुक्तों को एनआईए की अदालत सभी आरोपों से बरी कर देगी, ऐसी संभावना बहुत दिनों से लग रही थी। इसके पीछे कई कारण थे। पहला और सबसे बड़ा कारण तो यही था कि 2014 में देश में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद उन सभी जाँचों को धीमा और कमज़ोर करने की कोशिशें शुरू हो गई थीं जिनमें हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोग अभियुक्त थे।
समझौता ब्लास्ट, किस्त 1: इंसाफ़ से ‘समझौता’ है असीमानंद का बरी होना
- विश्लेषण
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- 23 Mar, 2019

समझौता धमाका मामले में स्वामी असीमानन्द को 'क्लीट चिट' मिल गई है। सरकार अदालत के फ़ैसले को चुनौती नहीं देगी। ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार आने के बाद से आतंकवाद से जुड़े कुछ ख़ास मामलों में, जिनमें आरएसएस से जुड़े लोगों के नाम हैं, प्रमुख अभियुक्त बरी हो रहे हैं। 'सत्य हिन्दी' ने इस मामले की गहरी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की है। पेश है इसकी पहली किस्त।
मोदी सरकार शुरू से उन सबको बचाने में लगी हुई थी और आज गृह मंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान से (कि सरकार इस फ़ैसले को चुनौती नहीं देगी), यह और स्पष्ट हो गया है कि किसी मामले की जाँच कैसे की जाए, यह अब अधिकारी नहीं, नेता और मंत्री तय करते हैं। एनआईए की वकील रोहिणी सालियान कुछ साल पहले ही इस ओर इशारा कर चुकी हैं। लेकिन असीमानंद और बाक़ी अभियुक्तों के समझौता मामले में बरी हो जाने के पीछे यही एकमात्र कारण नहीं था।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश