बीजेपी शासित हरियाणा के शिक्षा बोर्ड की 9वीं और 10वीं कक्षा के इतिहास की किताबों में विवादास्पद दावे किए गये हैं। '1947 में विभाजन के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार थी'। 'कांग्रेस के नेता जल्दी से जल्दी आज़ादी चाहते थे क्योंकि वे किसी भी क़ीमत पर सत्ता चाहते थे'। 'आरएसएस ने सक्रिय भूमिका निभाई और इसके संस्थापकों ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद व आज़ादी की लड़ाई के लिए जागरूकता फैलाई'। 'सावरकर के योगदान को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है'। इसके साथ ही किताब में सिंधु घाटी सभ्यता को सरस्वती-सिंधु सभ्यता बताया गया है। ये वे दावे हैं जिनपर विवाद होने की संभावना है। हरियाणा कांग्रेस ने इस पर आपत्ति जताई भी है।
हरियाणा बोर्ड के इतिहास की किताबों में बदलाव का काम 2017 से ही शुरू हो गया था। अब ये किताबें तैयार हो चुकी हैं। इतिहास की ये किताबें 20 मई से उपलब्ध हो जाएँगी। लेकिन इसके उपलब्ध होने से पहले किताबों में कुछ दावों पर विवाद होने की संभावना है। इसमें भी ख़ासकर कक्षा 9 और कक्षा 10 के इतिहास की किताबों को लेकर।
हरियाणा में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा तैयार कक्षा 9 के लिए इतिहास की नयी किताब में कांग्रेस को लेकर विवादास्पद दावे किए गए हैं। 'द वायर' की रिपोर्ट के अनुसार किताब के एक अध्याय में भारत के विभाजन के कारणों का विवरण दिया गया है। इसमें विभाजन के लिए कांग्रेस पार्टी की 'सत्ता के लालच और तुष्टिकरण की राजनीति' को दोषी ठहराया गया है। हालाँकि, कांग्रेस के अलावा किताब में विभाजन के लिए मोहम्मद अली जिन्ना की ज़िद और फूट डालो और राज करो की ब्रिटिश नीति के अलावा मुसलिम लीग की 'सांप्रदायिक विचारधारा' को भी दोषी ठहराया गया।
पुस्तक में कहा गया है कि 1940 के दशक में कांग्रेस के नेता 'ऊब चुके' थे और स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखने के इच्छुक नहीं थे। रिपोर्ट के अनुसार पुस्तक में यह भी कहा गया है कि मुसलिम लीग कई मुद्दों पर 'कांग्रेस का लगातार विरोध' कर रही थी, लेकिन कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ मुसलिम लीग के साथ सहयोग करने की इच्छुक थी।
रिपोर्ट में पुस्तक के हवाले से कहा गया है, 'मोहम्मद अली जिन्ना को बार-बार लुभाया गया, और उन्हें जो अनुचित महत्व मिला, उसके कारण वह अधिक सशक्त हुए। नतीजतन, देश कमजोर हो रहा था, सांप्रदायिक झड़पें आम थीं... इससे कांग्रेस को विश्वास हो गया कि देश में शांति बहाल करने के लिए विभाजन ही एकमात्र रास्ता बचा है।' पुस्तक में सवाल उठाया गया है कि यदि दोनों देशों के बीच शांति सुनिश्चित करने के लिए विभाजन ज़रूरी था तो 'आज भी शांति स्थापित क्यों नहीं हुई?'
इसके अलावा कक्षा 9 की पुस्तक के पहले अध्याय, 'भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण' में महर्षि अरबिंदो और आरएसएस के संस्थापक केशवराव बलिराम हेडगेवार जैसी 20वीं सदी की हस्तियों के योगदान के बारे में बात की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार का उपयोग किया गया।
किताब में कहा गया है, 'इसने भारतीय समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।' हेडगेवार पर एक विस्तृत निबंध भी है जिसमें उन्हें 'महान देशभक्त और अपने जीवनकाल में क्रांतिकारी विचारों को मानने वाला' कहा गया है।
पुस्तक में आरएसएस को समर्पित अंश भी हैं, जो दावा करते हैं कि यह 'जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता के ख़िलाफ़ था।'
किताब में लिखा गया है, 'सावरकर के योगदान को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता'। पुस्तक कहती है, 'सावरकर हिंदुत्व के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने भारत के विभाजन का भी कड़ा विरोध किया था।' पुस्तक में यह भी दावा किया गया है कि महात्मा गांधी ने 1920 में यंग इंडिया पत्रिका में सावरकर की रिहाई की अपील की थी। विपक्षी दल पहले से ही इस दावे को तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने वाला क़रार देते रहे हैं। द वायर की रिपोर्ट में कहा गया है कि किताब में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि सावरकर को जेल से कैसे रिहा किया गया। जबकि सावरकर के आलोचकों ने कहा है कि उन्होंने जेल से छूटने के लिए ब्रिटिश शासकों से माफी मांगी थी। इस मामले में उनके द्वारा ब्रिटिश सरकार को लिखे गये ख़त का भी हवाला दिया जाता रहा है।
'सरस्वती-सिंधु' सभ्यता
रिपोर्ट में कहा गया है कि इतिहास की कक्षा 10 की पुस्तक में 'सिंधु घाटी सभ्यता' को 'सरस्वती-सिंधु सभ्यता' कहा गया है। बता दें कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों में वर्णित सरस्वती नदी के बारे में दावा किया जाता है कि यह एक 'नदी है जिसके चारों ओर प्राचीन भारतीय सभ्यता सबसे पहले शुरू हुई थी।'
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने 'द वायर' से कहा कि यह भाजपा द्वारा शिक्षा का 'राजनीतिकरण' करने का एक स्पष्ट प्रयास है। उन्होंने कहा कि बीजेपी इतिहास का भगवाकरण करने और युवाओं का ब्रेनवॉश करने की कोशिश कर रही है।
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इस मामले में हरियाणा बोर्ड का कहना है कि बदलाव 'तथ्यों के आधार पर' किया गया है। हरियाणा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. जगबीर सिंह ने विपक्ष के आरोपों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि नई किताब में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर राजनीतिक रंग दिया गया है। उन्होंने बताया कि नई किताबों की सामग्री 'इतिहास में उपलब्ध रिकॉर्ड' पर आधारित थी। उन्होंने कहा, 'अभ्यास में 40 से अधिक इतिहास के विद्वान शामिल थे और हमारे पास उनके द्वारा उद्धृत सत्यापित स्रोत हैं। मैं अनावश्यक राजनीतिकरण में शामिल नहीं होना चाहता लेकिन मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी के सामने सही तथ्य पेश करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए पर्याप्त प्रयास किए गए।'
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