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सबको मताधिकार दिलाने की लम्बी लड़ाई लड़ी थी आम्बेडकर ने

आज देश में लोकसभा चुनावों की धूम मची हुई है और हर राजनीतिक दल अपने पक्ष में मतदाताओं को करने के लिए साम-दाम-दंड-भेद जैसे हर हथकंडों का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन देश के हर वयस्क नागरिक को मताधिकार की कहानी बड़ी दिलचस्प है। देश को हर वयस्क नागरिक को मताधिकार मिले इसकी नींव आज़ादी के बाद नहीं उससे भी पहले पड़ चुकी थी। यह वह दौर था जब भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन में वहाँ की महिलाओं ने हर वयस्क महिला को वोट के अधिकार के लिए आन्दोलन शुरू कर दिया था। भारत में हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार मिले इसकी वकालत बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर पुरजोर तरीक़े के साथ कर रहे थे।

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27 जनवरी 1919 को आम्बेडकर ने साउथ बोरो कमेटी के सामने वयस्क मताधिकार की बात कही थी। भारतीयों को मताधिकार कैसे दिया जाए इसके लिए साल 1928 में साइमन कमीशन भारत में आया था। साइमन कमीशन के समक्ष बाबा साहब आम्बेडकर ने हर वयस्क नागरिक को मताधिकार का प्रतिवेदन दिया था। इस प्रतिवेदन में कहा गया कि भारत के हर 21 साल के वयस्क नागरिक चाहे वह स्त्री हो या पुरुष को मताधिकार दिया जाए। 

आम्बेडकर साइमन कमीशन तक ही नहीं रुके, उन्होंने साल 1931, 1932 और 1933 में हुए पहले, दूसरे और तीसरे गोलमेज सम्मलेन में लगातार इस बात पर ज़ोर दिया कि हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार होना चाहिए। चूँकि इंग्लैण्ड में भी 1832 से लेकर 1918 के बीच कई चरणों में वयस्क को मताधिकार दिया गया। ब्रिटेन में सभी वयस्क महिलाओं को मताधिकार 2 जुलाई 1928 को दिया गया था। ऐसे में ब्रिटेन भी नहीं चाहता था कि भारत में एक मुश्त ही सभी वयस्कों को मताधिकार दे दिया जाए। वयस्कों को एक साथ मताधिकार पर भारत में भी नेताओं में मतभेद था। जब गोलमेज सम्मेलनों में आम्बेडकर सभी को मताधिकार की बात करते थे तो भारत के ही अन्य नेता इसे चरणबद्ध तरीक़े से, शिक्षा के आधार पर या सरकार को राजस्व भरने के आधार पर देने की बात करते थे।

आम्बेडकर यह अच्छी तरह से जानते थे कि यदि देश में पिछड़ों और दलितों को मताधिकार देने में देरी की जाएगी या उस पर शर्तें लगाई जाएगी तो सत्ता में भागीदारी पर सवर्ण जाति के लोगों और धनाढ्य लोगों तक ही सीमित रह जाएगी।

गोलमेज सम्मलेन में आम्बेडकर ने कहा था कि मताधिकार कृपा दृष्टि के रूप में नहीं अधिकार के रूप में दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वंचित लोगों को मताधिकार शर्तों के हिसाब से स्वीकार करना ऐसा ही होगा जैसा कि ग़ुलामी में कोई बुराई नहीं है, ऐसा कहना है।

गोलमेज सम्मेलनों में जब निरक्षर लोगों को मताधिकार कैसे दिया जाए की बात हुई तो आम्बेडकर ने सवाल उठाया कि निरक्षरता के लिए ज़िम्मेदार कौन? यदि निरक्षरता के लिए शासन ज़िम्मेदार है तो मतदान के लिए साक्षरता की शर्त लगाना लाखों -करोड़ों लोगों को मतदान अधिकार से वंचित रखने जैसा है। मान लिया जाए कि सरकार निरक्षरों को साक्षर बनाने का काम करेगी लेकिन इसकी गारंटी क्या है? 

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शिक्षा से वंचित रखना अन्याय

लोगों को शिक्षा से वंचित रखना अन्याय करने जैसा है और उस आधार पर उन्हें मतदान के अधिकार से वंचित रखना उनके ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। आम्बेडकर कहते हैं कि अपनी निरक्षरता को दूर करने के लिए वंचितों के पास जो सबसे बड़ा हथियार साबित होगा, वह होगा मताधिकार। उनका तर्क था कि मताधिकार बुद्धिमता का सवाल ज़रूर हो सकता है साक्षरता का नहीं।

भारत सहित पूरी दुनिया में यह माना गया है कि निरक्षर व्यक्ति के पास भी बुद्धिमता होती है। क़ानून भी यह मनाता है कि एक निश्चित उम्र के बाद व्यक्ति में इतनी बुद्धिमता आ जाती है कि उसमें अपना काम चलाने की क्षमता आ जाती है।

आम्बेडकर ने कहा था जो साथी यह कहते हैं कि भारत की जनता मताधिकार के लिए पात्र नहीं है? उन्हें स्वराज्य या आज़ादी की माँग छोड़कर गोलमेज सम्मलेन से बाहर चले जाना चाहिए। 22 दिसंबर 1930 के गोलमेज सम्मलेन की उप समिति की बैठक में आम्बेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि बैठक में सिर्फ़ दो सवालों पर चर्चा होनी चाहिए। 

  1. क्या भारत में ज़िम्मेदार सरकार होनी चाहिए? 
  2. वह सरकार किसके लिए ज़िम्मेदार रहेगी? 

उन्होंने कहा कि यदि कोई सरकार जनता के लिए क़ानून बनाती है और यह चाहती है कि जनता उसका पालन करे तो ऐसी सरकार के चयन में जनता की भागीदारी होना बहुत ज़रूरी है। गोलमेज सम्मेलनों में आम्बेडकर के इन्हीं तर्कों के चलते भारतीय नेताओं व ब्रिटिश अधिकारियों के तर्क ख़ारिज़ हो गए कि वयस्क नागरिकों को मताधिकार चरणबद्ध तरीक़े या शर्तों के अनुरूप दिया जाए। अधिकाँश ब्रिटिश शासक आम्बेडकर की दलीलों से सहमत हुए और अंग्रेज़ सरकार ने भारतीय क़ानून 1935 पारित किया उसमें मताधिकार का भी उल्लेख किया। 1935 के इस क़ानून का बड़ा हिस्सा भारतीय संविधान में शामिल किया गया। 26 जनवरी 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ तो हर वयस्क भारतीय नागरिक को मताधिकार का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ।

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संजय राय
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